अब आँखों से ही बरसेंगे
अब आँखों से ही बरसेंगे
अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे
शोक है
मनी नहीं खुशियाँ
गाँव में इस बार
दशहरा पर
असमय गर्भ पात हुआ है
गिरा है गर्भ
धान्य का धरा पर
कृषक के समक्ष
संकट विशाल है
पड़ा फिर से अकाल है
खाने के एक निवाले को
रमुआ के बच्चे तरसेंगे।
अंबर से मेघ...........
तीन साल की पुरानी धोती
चार साल की फटी साड़ी
अब एक साल और
चलेगी
पर भूख का इलाज कहाँ है
भंडार में अनाज कहाँ है
छह साल की मुनियाँ
अपने पेट पर रख कर हाथ
मलेगी
टीवी पर चीखने वाले
बिना मुद्दे के ही गरजेंगे।
अंबर से मेघ...............
व्यवस्था बहुत बीमार है
अकाल सरकारी त्योहार है
कमाने का खूब है
अवसर
बटेगी राहत की रेवड़ी
खा जाएँगे नेता,
अफसर
शहर के बड़े बंगलों में
कहकहे व्हिस्की में घुलेंगे।
अंबर से मेघ,,,,,,,,,,,,,,,,
रमेशर छोड़ेगा अब गाँव
जाएगा दिल्ली, सूरत, गुड़गांव
ज़िन्दा मांस खाने वालों से
नोचवाएगा
तब जाकर
दो जून की रोटी पाएगा ।
पीछे गाँव में बीबी, बच्चे
मनी ऑर्डर की राह तकेंगे
पोस्ट मैन भी कमीशन लेगा
तब जाकर
चूल्हा जलेगा
बाबा बादल की आशा में
आसमान को सतत तकेंगे।
अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे
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