परिंदे का ईमान : गज़ल
परिंदे का ईमान : गज़ल
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मैं परिंदा हूँ मेरा ईमान न पूछो,
क्या हूँ, हिन्दू या कि मुसलमान न पूछो।
चर्च, मंदिर, मस्जिदें सब एक बराबर
रहता किसमें है मिरा भगवान न पूछो।
मज़हबी उन्माद में जो मर गया वो था
एक जिंदा आदमी, पहचान न पूछो।
पीठ में घोपा हुआ है नफरती खंजर
रोता क्यों है अपना हिंदुस्तान न पूछो।
आलम-ए-बेचैनियाँ हर सिम्त हैं फैली
हर गली हरसू क्यों है वीरान न पूछो ।
खूब काटी है फसल अहले सियासत ने
खाद बन, किसने गँवाईं जान न पूछो ।
भाई मारा जाता है जब, भाई के हाथों
होती कितनी ये जमीं हैरान न पूछो ।
