STORYMIRROR

Neelam Sharma

Others

4  

Neelam Sharma

Others

आकुल बसंत

आकुल बसंत

1 min
349

आकुल बसंत, ले प्रीति सुगंध,

व्याकुल बसंत में, सजनी कंत।

दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद,

पगडंडी यौवन की, प्रीत अनंत।


कुहू- कुहू कोयल के मधुर छंद,

मधुर बोल,सजन से उर जीवंत।

पीले सुमनों का पीकर मकरंद,

मिलते क्षितिज पार हैं आदी-अंत।


धीरे-धीरे आते देखा

मैंने उसको क्षितिज पार।

नदिया के दर्पण में मुखड़ा

देख फिर मैं किया श्रृंगार ।


ली झरनों की पग बाँध पायल

सजा लिया स्वर्णिम संसार।

रवि किरणों से माँग भरी

सुरभित पुष्प सजाए बाल।


पिया उढाए प्रीत चुनरिया

कभी पहनाए बहियां माल।

झाँके भास्कर किसलय दल से

सिंदुरी आभा केसर भाल।


Rate this content
Log in