आज की द्रोपदी
आज की द्रोपदी
उठो द्रोपदी बनो वीरांगना, खुद शक्ति का सँचार करो,
कोमल चूड़ी वाले हाथों से, दुष्ट दुशासन संहार करो।
हे यग्नसैनी ! हे द्रुपद सुता !तुम रूप आज विकराल धरो,
अधर्म की इस राज सभा में रणचंडी बनकर खप्पर भरो।
नहीं मुरारी अब आएँगे था जिसने तब हुंकार किया,
थाम खडग तुम बनो शक्ति था जिसने रक्त श्रृंगार किया।
ये नहीं बात युग त्रेता- द्वापर की,ये कुकर्मी आज भी ज़िंदा हैं,
नारी रूप द्रौपदी शोषित सी,हर बाप-भाई आज शर्मिंदा हैं।
चलो उष्ण बनो खुद कृष्ण बनो, तुम दो धारी तलवार बनो,
काँपे दुष्कर्मी थर्राए,तुम शिव धनुष टंकार बनो।
