आहट
आहट
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जरा सी आहट से चौंक जाती हूँ,
लगता है तुम होगे आस पास,
पर जब देखती हूँ,
तुम क्या तुम्हारी
परछाई भी नहीं मेरे पास,
याद आते हैं वह लम्हे,
जो गुजारे थे तुमने और मैंने,
याद आते हैं वह पल
जब चूम लेते थे मेरी पलकों को,
याद आता है वह हाथों का स्पर्श,
जब सहलाते थे मेरे गालों को ,
मैं हो जाती थी निहाल,
तुम्हारी इन्हीं बातों पर,
बन जाती थी एक छोटी चिड़िया,
जो ढूँढती थी एक मजबूत घोंसला ,
पर उसे पता नहीं कि घोंसला
मजबूत होता ही नहीं ,
वह तो तिनकों से जोड़ा जाता है,
जो जरा सी आंधी से ही
उजड़ जाता है पर मेरा,
पागलपन देखो खड़ी हूँ
वीराने में उसी आहट के
इंतजार में......