सच ही तो है
सच ही तो है
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तुम्हें याद रखना है कुछ
तो याद रखना अपना ये बचपन
जो आज भी छलकता है
उन आसुओं को छुपता है
दर्द सहकर भी हसता है
कि ज़रूरत नहीं याद रखना
कितने घाव मिले सफ़र में
कि किसने किसने कब
सपनों पर पत्थर फेका है
कि तुमने जो कहा वो निभाया
जो नहीं कहा, वो भी निभाया
कि तुम जब घायल होकर चुप थी
कोई महरम पास तक नहीं फटका
कि ख़ुद के हाथ पैरों में ताक़त भरकर
कूद पड़ी तुम मुसीबतों से लड़ने
कि उनके शब्द उतने ही खोखले हैं
जितने उन्हें कहने वाले लोग
कि आहत बहुत हुई तुम
लेकिन चूर नहीं हो पाई
कि रिश्तों के नाम पर मिले झूठ को समझकर भी
उनका मान बढ़ाती रही तुम
अपने अस्तित्व को छोड़ आयी तुम
पर सभव नहीं है इसे छोड़ना
जिंदगी चाहत से नहीं मिलती
खुशियों की कढ़ाई बुननी पड़ती है
गम को गले लगाया तुमने
पराया धन परायी रह गयी
नहीं सुन पायी कभी प्यार के बोल
उन्होंने तुम्हें काँच का मामूली टुकड़ा समझा
कि वक़्त ने तुमसे लिए हिम्मत के बड़े इम्तिहान
लेकिन तुम्हे जीतकर दिखानी हर बाज़ी
आज उसका समय बोल रहा है
कल तुम्हारा समय बोलेगा
उम्मीदों से सींचा है तुमने खुदको
खोयी दौलत हासिल करनी है अब
मुझे फ़ख्र था, फ़ख्र है और रहेगा
तुम्हारे अंदर का बचपन जो
सीखा देगा इंसानियत की ताकत
और जीने की हैसियत