स्वतन्त्र लेखन
काव्य के भाव में यदि कहूं मैं 'अरुण' तुम मेरी नायिका पद्मिनी हो गई। काव्य के भाव में यदि कहूं मैं 'अरुण' तुम मेरी नायिका पद्मिनी हो गई।
हंस रहे हैं लव लेकिन दिल धधक रहा है ये क्या करूं 'अरुण'अब मैं मन बहुत अकेला है। हंस रहे हैं लव लेकिन दिल धधक रहा है ये क्या करूं 'अरुण'अब मैं मन बहुत अकेला ह...
तो सोचो क्या होगा कल्पना करो कोरोना के रुप में। तो सोचो क्या होगा कल्पना करो कोरोना के रुप में।
मेरे मन के शिवाले में अभी भी मूर्ति है मेरे मन के शिवाले में अभी भी मूर्ति है
नदियाँ सिकुड़ती जा रही हैं। नदियाँ सिकुड़ती जा रही हैं।
इसी जन्म में कभी-न-कभी किसी-न-किसी रुप में। इसी जन्म में कभी-न-कभी किसी-न-किसी रुप में।