homosapien |physics student | writer | poet
टूटता गया, बिखरता गया जो वक्त के साथ वो मलबा कोई ख्वाब था। टूटता गया, बिखरता गया जो वक्त के साथ वो मलबा कोई ख्वाब था।
पर कुछ है, जो बन के अश्क मूसलाधार बरसे जा रहे। पर कुछ है, जो बन के अश्क मूसलाधार बरसे जा रहे।
जवाब कई सारे है, सवाल फिर भी वही है क्यों होते हैं खून खराबे इस जहां में ! जवाब कई सारे है, सवाल फिर भी वही है क्यों होते हैं खून खराबे इस जहां में !
पानी आंखों का हर दिन बरसता है, पर मेरा मन रेगिस्तान सा क्यों हुआ है। पानी आंखों का हर दिन बरसता है, पर मेरा मन रेगिस्तान सा क्यों हुआ है।