मंजिलों की तलाश में निकल पड़े हैं।। रास्तों का पता नहीं... फिर भी जाने क्यों चल पड़े हैं।।
दुख की परिभाषा सबने अपने हिसाब से लिखी। दुख की परिभाषा सबने अपने हिसाब से लिखी।
क्या उदासी को कभी समझा है ? क्यों उदासी के मायने हैं इतने कठिन ? क्या उदासी को कभी समझा है ? क्यों उदासी के मायने हैं इतने कठिन ?
कभी बैठना उसकी आत्मा टटोलने फिर जानोगे स्त्री होना कहां सरल है ? कभी बैठना उसकी आत्मा टटोलने फिर जानोगे स्त्री होना कहां सरल है ?
मैं तब थी नन्ही सी .... फिर फूटा अंकुर एक... मिला रास्ता बाहर आने का , फिर बढ़ने की जिद- सी ठान... मैं तब थी नन्ही सी .... फिर फूटा अंकुर एक... मिला रास्ता बाहर आने का , फिर ...
हर रोज स्याह होती जा रही, व्यथाओं की तस्वीर उसकी...! हर रोज स्याह होती जा रही, व्यथाओं की तस्वीर उसकी...!