अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में एक साकारात्मक सोच लाना चाहती हूं। समाज की प्रगति में योगदान देना चाहती हूँ।
पर, हर सुहानी सुबह का आगाज़, एक कप गर्म चाय से ही होगा। पर, हर सुहानी सुबह का आगाज़, एक कप गर्म चाय से ही होगा।
सर्दियों में छत पर मूंगफली की दावत करना, क्या लौट कर आएंगे, वो पुराने दिन, वो सुहाने द सर्दियों में छत पर मूंगफली की दावत करना, क्या लौट कर आएंगे, वो पुराने दिन,...
तुम्हारी एक ना, और हमारे बीच, सब कुछ बदल गया। तुम्हारी एक ना, और हमारे बीच, सब कुछ बदल गया।
वो बेफिक्र सी ज़िन्दगी, वो मस्ती , वो ठहाके। वो बेफिक्र सी ज़िन्दगी, वो मस्ती , वो ठहाके।
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है था वो कोई अजनबी। क्यों आज मुझे कहना पड़ता है था वो कोई अजनबी।
गुज़र रही है जि़न्दगी कुछ ऐसे, मानो हाथ से रेत फिसल रही हो जैसे। गुज़र रही है जि़न्दगी कुछ ऐसे, मानो हाथ से रेत फिसल रही हो जैसे।
स्कूल की यादें हैं कितनी सुहानी, छिपी है इनमें कितनी कहानी।। स्कूल की यादें हैं कितनी सुहानी, छिपी है इनमें कितनी कहानी।।