इंसाफ़
इंसाफ़
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सारा संसार कहाँ माँगती हूँ
मैं तो बस,मेरा घर माँगती हूँ
कहने को तो दो-दो घर हैं मेरे
पर हक नहीं कहीं भी
यह उलझन सुलझाना चाहती हूँ
सारे रिश्तों पर मैंने सदा प्यार उड़ेला
बदले में मिली अवहेलना
सागर भर प्रेम नहीं
एक बूँद माँगती हूँ
सहेजने,संभालने में
न बीत जाए ज़िंदगी
सिर्फ़ अपनी पहचान माँगती हूँ
लहरों सा यह जीवन मेरा
जाने कब आ जाए कोई तूफ़ान
मैं तो बस किनारा माँगती हूँ
यूँ खेलो न मेरी भावनाओं से
जान है मुझमें,इंसान हूँ
बस इंसाफ़ माँगती हूँ...