औरत के दिल का रास्ता
औरत के दिल का रास्ता
"तुम्हें दिल के रास्ते तक पहुंचने के लिए, दिल को समझना पड़ेगा। पहले तो खुद को एहसास करवाओ कि औरत का भी दिल होता है। तभी तुम रास्ते की बात करना!" शिवानी ने राकेश को कहा।
शिवानी एक रिलेशनशिप काउंसलर है, रोज ही किसी ना किसी शादीशुदा, प्रेम संबंध में जुड़े लोग अपनी उलझन लेकर शिवानी से मिलते रहते हैं। लोगों की ज़िन्दगी की उलझनों के हल ढूंढते ढूंढते शिवानी ने फैसला किया कि अब तो मुझे भी शादी कर ही लेनी चाहिए।
शिवानी ने राकेश से शादी की, जो पेशे से एक वकील है। एक दूसरे के कामकाज को वो दोनों बखूबी समझते हैं, इसलिए शिवानी ने झट से शादी के लिए हां कर दी थी।
शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा,पर जैसे ही परिवार को आगे बढ़ाने की बात कोई कहता उनसे, तो दोनों ही एक दूसरे के चेहरे पर उस सवाल का जवाब ढूंढने लग जाते।
दोनों अब तक असफल शादियों के उदाहरणों से बहुत कुछ सीख चुके थे, इसलिए उन्होंने फैसला किया पहले एक दूसरे को और अच्छी तरह समझ लें फिर परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचेंगे।
शिवानी अपने क्लाइंट्स के जिस मुद्दे का हल नहीं ढूंढ पाती उस पर राकेश से जरुर चर्चा करती थी, क्यूंकि किसी पूर्वाग्रह के चलते वो किसी को कोई ग़लत सलाह नहीं देना चाहती थी।
एक दिन सुधा और अविनाश नाम का एक विवाहित जोड़ा शिवानी के पास आया।
शादी को 6 महीने ही हुए थे, परंतु दोनों का रिश्ता बस टूटने की स्थिति पर ही था।
शिवानी ने दोनों की बात सुनी, और एक दूसरे को समझने के लिए वक्त देने की बात कही।
शिवानी दोनों से अलग अलग बात भी करना चाहती थी, ताकि उनके बीच की कड़वाहट की जड़ को जान सके।
शिवानी दोनों को एक हफ़्ते बाद अलग अलग आने को कहा।
शिवानी ने घर आकर देखा राकेश आज किचन में कुछ बना रहे है! तो पूछा -" आज कैसे!! जल्दी आ गए? भूख लगी है क्या?"
राकेश -" अरे नहीं!! मैंने सोचा आज तुम्हें सरप्राइज़ दूं। 6 महीने हो गए हमारी शादी को। तुम्हारी पसंद का केक बना रहा हूं।"
शिवानी अपने काम की उलझन में थी -" चलो ! मैं आती हूं" बस इतना ही कहा।
राकेश को अंदाज़ा हो गया कि काम की टेंशन में है।
इतने में शिवानी भी आ गई।
राकेश -" क्या हुआ सब खैरियत काउंसलर साहिबा!"
शिवानी को राकेश का यूं चुटकी लेना! उसे मुस्कुराने से रोक नहीं पाया।
शिवानी -" हां!! वकील साहब!! कोई रिश्ता हमारी सलाह से ठीक हो जाए और आपकी अदालत में जाकर केस ना बने; इसी उधेड़बुन में हूं!"
राकेश -" अरे!! हमारे बच्चों का भी ख्याल करे। यूं आप ही सबको सुधार देंगी तो हमारे पास कौन आएगा।"
राकेश खूब जोर से हंसा। शिवानी भी मुस्कुरा दी।
दोनों ने केक काटा और एक दूसरे को खिलाया।
फिर यूंही रोज की तरह एक दूसरे से चर्चा करने लगे। तो शिवानी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा - " वकील साहब आपको लगता है आदमी के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है।"
राकेश -" जी बिल्कुल!! बड़े बुजुर्ग तो यही कहते आए हैं। मैंने सोचा ये युक्ति क्या पता औरतों पर भी कामगार हो इसलिए तो मैंने केक बनाया है।"
शिवानी मुस्कुराते हुए -" अच्छा!! मतलब अगर मैं सिर्फ आपके लिए अच्छे अच्छे पकवान बनाती रहूं। आपसे आपके दिल का हाल ना पूछूं तो चलेगा !! सारी उम्र गुजार लोगे यूंही??"
राकेश -" नहीं ऐसा नहीं है। जीवनसाथी की जरूरत क्या रहेगी फिर, आजकल टिफिन सर्विस की कमी है क्या शहर में??
ये तो बस इसलिए कहावतें बना दी बुजुर्गों ने क्यूंकि उन्हें लगता था सिर्फ औरत ही घर का खाना बनाती है और बनाती रहे।
मेरे अनुसार तो ये औरत को बहलाने का जुमला भर है!!"
शिवानी -" क्या बात है वकील साहब!! आज तो बड़ी नारीवादी बातें कर रहे हैं आप!!"
राकेश -" ऐसा नहीं है। नारीवादी बात करने का मतलब ये तो नहीं कि मैं पुरुषों का शत्रु हूं। आप बताइए आप किस उलझन में है।"
शिवानी -"एक जोड़े की उलझन है की उसकी बीवी उसके लिए खाना नहीं बनाती, हर तीसरे दिन बाहर जाकर खाना होता है। वो कहता है कि उसकी पत्नी उसके दिल में नहीं उतर पाई।
जबकि वो पत्नी खूब शॉपिंग करवाता है, गिफ्ट्स लाता है तो उसे पत्नी का दिल रखना आता है।"
राकेश -" तो पत्नी की उलझन क्या है।"
शिवानी -" पत्नी कहती है कि सिर्फ खाना बनाने के लिए तो शादी नहीं हुई ना!! पति कभी नहीं पूछते कि तुम कैसी हो। सबके सामने अपमान करके फिर मनाने के लिए गिफ्ट्स ले आते हैं ये भी कोई ज़िन्दगी हुईं"
राकेश -" अच्छा!! मामला तो गंभीर है। "
शिवानी -" हां!! आप बताइए आदमी के दिल का रास्ता तो बड़े लोग बता गए कि पेट से होकर जाता है, फिर औरत के दिल का रास्ता कहां से होकर गुजरता है?"
राकेश भी सोच में पड़ गया। अपने 10 साल के कैरियर में उसने ऐसी कोई दलील ना सुनी, ना करी।
ना किसी कानून की किताब में औरत के दिल के रास्ते का जिक्र पढ़ा, ना किसी बुजुर्ग से सुना।
राकेश -" बुरा मत मानना!! पर हर औरत अलग होती है ,तो कुछ सिर्फ शॉपिंग से खुश हो जाती है, कुछ गिफ्ट्स से, कुछ मेकअप से, कुछ घूमने फिरने से, कुछ अपनी आज़ादी से, कुछ ...!!"
शिवानी -" कुछ..?? इन कुछ में से ही मेरी क्लाइंट है और मैं भी। इन कुछ के दिल के रास्ते के बारे में बताओ वकील साहब!!"
राकेश -" भई हम क्या बताएं, लोग कहते हैं औरत को तो ईश्वर भी नहीं समझ सकता!! मैं तो फिर बस एक वकील हूं। औरत के दिल का रास्ता बहुत मुश्किल ही होगा फिर!!"
शिवानी -" यही तो!! लोगों ने ये कभी स्वीकारा ही भी की औरत का भी दिल होता है।
वो हमेशा औरत के दिल को चीजों से तोलते है।
बचपन में गुड़ियों, ड्रेस में दिल। बड़े होकर पढ़ाई में बस दिल लगाओ कहते हैं।
शादी के बाद पति और बच्चों, ससुराल में दिल लगाओ।
सारी उम्र पति के दिल के रास्ते को ढूंढो।
उस रास्ते को ढूंढते हुए अपनी पूरी उम्र खो दो। फिर भी कोई उसके दिल के वजूद की बात करता ही नहीं!!"
राकेश -" हां!! बात में तो दम है काउंसलर साहिबा!! तो अब आप बताइए इसका क्या हल है? मैं भी जानने के लिए उत्सुक हूं।"
शिवानी -" मैं अगर खुद को सुधा की जगह रखूं या खुद अपनी जगह ही रहूं तो मुझे लगता है -
"औरत के दिल के वजूद को स्वीकारना" ही औरत के दिल का रास्ता है।
और मैं तो कहती हूं सिर्फ रास्ता ही क्यूं ढूंढना, मंजिल क्यूं ना बनाएं " दिल " को।
चाहे पुरुष का दिल हो या औरत का! सिर्फ रास्ता क्यूं ढूंढते हैं लोग? दिल को क्यूं नहीं!!"
राकेश ने शिवानी का हाथ पकड़कर कहा -" तो आप मुझे बताइए दिल को कैसे ढूंढ हम आपके!!"
राकेश के हाथ का गरम स्पर्श शिवानी को जैसे कह रहा हो, आज खोल दो दिल की हर बात मैं सचमुच दिल तक ही पहुंचना चाहता हूं; ऐसा उसे महसूस हुआ।
शिवानी ने कहा -" मुश्किल नहीं है औरत के दिल का रास्ता। बस उस दिल को स्वीकारना और रास्ते की बजाय उस दिल को मंजिल मानना ही है "औरत के दिल का रास्ता"
जब किसी को फिक्र हो, औरत के दिल की!!
सिर्फ चीजों से दिल रखने भर की नहीं!!
एहसासों से, सम्मान से, विश्वास से जो भर दे दिल को।
सचमुच उसी को मिल सकता है औरत के दिल का रास्ता भी, और मंजिल भी!!"
ये सुनते ही राकेश ने शिवानी को गले से लगाया और कहा "तो काउंसलर साहिबा!! आपको सुधा की परेशानी का हल भी मिल गया और मुझे आपके दिल का रास्ता भी और मेरी मंजिल भी!!"
ये सुनकर दोनों मुस्कुराए।
दोस्तों ! मुश्किल नहीं है औरत के दिल का रास्ता!!
औरत का भी दिल है; ये बात ही बस कोई स्वीकार ले तो उसे मिल जाता है औरत के दिल का रास्ता।
अपने सम्मान,विश्वास, एहसास से अगर वो इस रास्ते को सजा पाए तो उसे सिर्फ रास्ता नहीं ; मंजिल भी मिल जाती है।