औरत
औरत
क्यूँ बढ़ाते है बवाल
उसके माँ बाप को भी
क्यूँ कटघरे मे खड़ा किया जाता है
तानो में उनको लेकर औरत
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बात बात पर क्यूँ औरत को ताड़ा जाता है
हर बात पर क्यूँ
उसकी आत्मा को मारा जाता है
क्यूँ दाग़े जाते है
उस पर ही सब सवाल
साध के उसको ही निशाना
क्यूँ अपमानित किया जाता है
क्या अपने जिगर के टुकड़े को सौंपना
उनकी कोई ग़लती थी
या क्या उनसे अपनी बेटी
ख़ुद से नहीं पलती थी
असमंजस सी स्थिति है
बड़ी दुखद परिस्थिति है
औरत के संस्कारों पर
क्यूँ सवाल उठता है
सुनाने वाले से पूछो
क्या उसके ये संस्कार पुख़्ता है
तरस आता है आज भी मुझे
उन लोगों की इस छोटी सोच पर
दिल को रुला देते है
जो रिश्तों को खरोंच कर
नहीं समझ पाई अब तक मैं
क्या औरत होना गुनाह है
पति से अपने न ज़ुबाँ लड़ाओ
क्यूँ कि सिर पर उसकी पनाह है
आख़िर कब तक और
औरत को ही सहना होगा
कब तक उसे उन बेतर्क आँसुओं संग बहना होगा ?