लहरें
लहरें
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टकरा रही हैं लहरें, पत्थर से जो यहाँ,
बिखरा रही हैं अमृत, लोगों पे वो यहाँ,
सूखे खड़े थे जो भी, वो भीग से गए हैं,
जाने वो कैसे पत्थर, जो भीगते नहीं हैं....
कमज़ोर जो भी थे, वो बह गये हैं सारे,
चंदा ने खोई चमकी, बस रह गये हैं तारे,
लोगों को कुछ पत्थर, लगते थे थोड़े प्यारे,
प्यार अपना वो जताकर, फिर आ गए किनारे....
आँधी हवा की ज़ोरों से, पत्थरों पे आई,
ये देख लड़ती लहरें भी, मन ही मन मुस्काईं,
फिर डर से उठे लोग, और घर को चल दिए,
थक के बेचारी लहरों ने, फिर भरी अंगड़ाई.....