Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

हलधर

हलधर

1 min
14.4K


जनता का जो पेट है भरता
तिल-तिल कर वो ही मरता
क्या शासन अब तक चेता है
ये रोज़ आंकड़ा क्यूँ बढ़ता।

किससे अपना करे मलाल
मण्डी में हैं खड़े दलाल
उनकी रोज़ तिजोरी भरती
बोझ कर्ज़ का नित बढ़ता
क्या शासन अब तक चेता है।

कभी बाढ़ खेती को खाये
सूखा कभी नींद उड़ाये
ओले खड़ी फसल बिछाते
नैनो से झरना झरता
क्या शासन अब तक चेता है।

पीठ-पेट दोनों मिले हुये
गुरबत में लब सिले हुये
बेटी ब्याहे की फीस चुकाये
यही सोच तिल-तिल मरता
क्या शासन अब तक चेता है।

खाद बीज सब सरकारी
लगा लाइन में वो भारी
बनी किश्त की लाचारी
यही सोच मन में डरता
क्या शासन अब तक चेता है।

सूख रही फूलों की डाली
कहने को धरती का माली
खीसा-हाथ दोनों ही खाली
रोज़ बरफ सा वो गलता
क्या शासन अब तक चेता है।

हाथों की हैं घिसी लकीरें
माथे पर हैं पड़ी लकीरें
रात-दिन उलझन में उलझा
फिर एक फैसला वो करता
क्या शासन अब तक चेता है
ये रोज़ आंकड़ा क्यूँ बढ़ता।


Rate this content
Log in