"मैं" और वह
"मैं" और वह
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"मैं" और वो
जब भी साथ चले
"मैं" आगे निकल गया
और वह बेचारा
पीछे ही रह गया
पर आगे निकल कर भी "मैं"
वीरान, तन्हा खड़ा होता
न कोई संग न साथ
यह "मैं" का अजीब घात
मन में खलने लगा
वहम सा इक पलने लगा
समझ नहीं पाया राज
यह "मैं" कैसे इतना बड़ा हो जाता
गज का फैसला मीलों में
परिवर्तित हो गया
पर जब से इस "मैं" का
साथ छोड़ा है
हटा राह का हर रोड़ा है
अब "मैं" और वो
एक हो गए हैं
लगता है
भेद सारे खो गए हैं।