“पहली बारिश की बूँद कोई जैसे धरती महकाती है”
“पहली बारिश की बूँद कोई जैसे धरती महकाती है”
पहली बारिश की बूँद कोई जैसे धरती महकाती है
वैसे ही अपने जीवन में बेटी घर भर महकाती है
घर में जब से बेटी आई नई ख़ुशियों का संचार हुआ
उसमें ही सारे तीर्थ दिखे बिटियामय सब संसार हुआ
दादा दादी नाना नानी ये फूले नहीं समाते हैं
चौथेपन में आ गये मगर बच्चों से खेल दिखाते हैं
ताऊ जी की चंचल नज़रें बच्चे की ओर निहार रहीं
ताई मन में उल्लास भरे बच्ची की नज़र उतार रहीं
फूफा फूफी ने तो देखो जैसे संसार पा लिया हो
पेड़ों की शाखाओं ने जैसे विस्तार पा लिया हो
चाचा को देखो बच्ची के संग बच्चे जैसे खेल रहे
बच्चे के रूप में ख़ुद अपना हैं बचपन जैसे ढूँढ रहे
पापा मम्मी का क्या कहना कुछ कहना ही बेमानी है
खालीपन इनका पूर्ण हुआ जो इनको मिली निशानी है
बगिया कोई ज्यों महक उठे कोई फूल नया खिल जाने पर
सारा घर भी है महक रहा बेटी घर में आ जाने पर