हो रहा है विनाश धीरे धीरे
हो रहा है विनाश धीरे धीरे
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हो रहा है कैसा आज असर धीरे धीरे
इंसानियत उगल रहा जहर धीरे धीरे
विवश हो प्रकृत भी प्रलय की आड में
ढा रहा है वो भी अब कहर धीरे धीरे
चंद ख्वाबों से सजाते जिंदगी को लोग
पल में ढह जाते हैं उनके घर धीरे धीरे
सजल हो रही आँखें अपनों के गम में
खत्म हुवे कितनों के सफर धीरे धीरे
वक्त ही लगायेगा अब मरहम जख्मों पर
भर जायेगा घाव ये मगर धीरे धीरे
आसमाँ छूनें की चाहत रखना सदा मन में
निकलेंगे ' दीश ' एक दिन पर धीरे धीरे
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जगदीश पांडेय " दीश "
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