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उड़ चले हम नील गगन में

उड़ चले हम नील गगन में

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उड चले प्रिये हम नील गगन में
धरा नही ये हमारे काबिल है
वहशी दरिंदे और शिकारी यहाँ
इंसानों की खाल में शामिल है
नित होते हैं अब शिकार यहाँ
पापियों का व्याभिचार जहाँ
कहाँ चुनें अब हम दाना पानी
वातावरण भी यहाँ धुमिल है
उड चले प्रिये हम नील गगन में
घरा नही ये हमारे काबिल है
.
घबरा न जाना तुम मेरी प्रिये
सदा ही तुम देना साथ प्रिये
प्रेम हमारा अमर रहेगा यहाँ
नही भाव जरा भी कुटिल है
उड चले प्रिये हम नील गगन में
धरा नही ये हमारे काबिल है

जगदीश पांडेय " दीश"

 


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