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मंदिर और मधुशाला

मंदिर और मधुशाला

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कहीं धूम मची है मदिरा की तो कहीं मची मधुशाला की
शाम ढलते ही लग जाती है होड़ जहाँ देखो प्याला की

घर में एक दाना नहीं बच्चे भूख से बिलख रहे
ख़्याल तो उनका आता नहीं और सुध लेते हैं मधुबाला की

होश हवाश सब खो देते हैं जानें क्या क्या कहते हैं
पहचान खो कर अपनो के ही तन के कपड़े खींचते हैं

नारी थी पूजनीय जहाँ वहाँ इज्ज़त लुटती है बाला की
शाम ढलते ही लग जाती है होड़ जहाँ देखो प्याला की

जगदीश पांडेय " दीश "

 


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