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माँ

माँ

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बिना मतलब के कहाँ करता है मेहरबानियां कोई,

तजुर्बा कहता, कर नहीं सकता माँ जितनी कुर्बानियां कोई।

 

इंसान ही रहने दो मत जोड़ो किसी मजहब से,

अब ना सुनाए यहाँ फिरकापरस्ती की कहानियाँ कोई।

 

बेटियों की छोटी से छोटी जरूरत का ख्याल रखती,

जैसे महलों में फूलों की तरह रखता है रानियां कोई।

 

आजकल ज़रा सी बात पर लोग तमाशा बना देते,

माँ के दिल की तरह माफ़ नहीं करता नादानियां कोई।

 

आशियाना सूना-सूना लगता अम्मी की नामौजूदगी में,

माँ के बिना दूर नहीं कर सकता घर की विरानियां कोई।

 

माँ के बिना कोई कदर नहीं करता इस जहान में,

फ़िर भी क्यों भूल जाता है माँ की कदरदानियां कोई।

 

अशीष के गम, खुशी से बखूबी वाकिफ़ है अम्मी,

माँ के सिवा पढ़ नहीं पाता मेरी सभी परेशानियां कोई।


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