भोर का मनोरम
भोर का मनोरम
भोर की लाली सुहानी स्वागती,
लालिमा मोहक मनोहर नाचती ,
प्रातकाले उठ मचलती गायिका,
नायिका बनकर थिरकती राजती।
पावनी लालित्य मधुरिम में सजी,
दिव्य सुरभित लाल माला से गजी,
मोहनी सूरत मदन रथ पर खड़ी,
शुभ सबेरा बोलती घंटी बजी।
कालिमा यह रात्रि की है काटती,
जागती सबको जगाती आरती,
निर्मला श्रृंगार रस की प्रेमिका,
लालिमा लाली कला शुभ भारती।
नेत्र में शिव सुंदरम संकेत है,
उज्ज्वला मधु भावना की नेत है,
विश्वमन को साजने की कामना,
भोर की लाली मृदुल शुचि चेत है।
भोर की लाली प्रभा हनुमान है,
लाल लोहित रंग की मुस्कान है,
सूर्य के शुभ आगमन की सूचिका,
आप में शुरुआत उत्तम ज्ञान है।
ब्रह्म की आभा बनी यह आ रही,
जागरण के गीत हरदम गा रही,
कह रही संसार से सोना नहीं,
आत्म के उद्धार पथ पर जा रही।
