इश्क़ की सुबह
इश्क़ की सुबह
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किस तरफ़ थे उस वक़्त बहती हवा के रुख
अजनबी थे वो जिनसे खिले बहार के कुसुम !
मुझमें समाया था वो जब धड़कन बनकर
खिल रहे थे हर जगह सिर्फ बसंत के फूल !
राहत सुक़ून कहीं छूट गया था पीछे मेरा
मन में बस गये थे गहरी चाहत के रुप !
मोहब्बत रही एक तरफ़ा ही किस्मत में
मिल गये हैं हजारों दुनिया भर के दुख !
रोज़ाना होती है दिल में इश्क़ की सुबह
सजते हैं कई सपने और चीखते दर्द के मुख !
जिन्दगी में तड़पाया है बहुत साजिशों ने
सजनी तुम्हारे पास हैं अब रमन के सुख