मोहब्बत
मोहब्बत
दिल ने हमसे असीम मोहब्बत करवाई है
तुम्हें पाने की खुदा से मन्नत मंगवाई है
थक सा गया हूँ दूरियों में रहकर अब प्रिय
तुम्हें पास पाने की दिल ने सदा लगायी है
खिलते सुमन जैसा होगा आशियाना अपना
चलो वहां चलें जहाँ इश्क की बहारेँ आई हैं
निगाहें नाज़ से देखूं हर लम्हा उस चाँद को
अंधेरी रात में जिसने जगमग फैलाई है
उदास सा चेहरा था अपना पतझड़ जैसा
चाहत ने तुम्हारी बसंत बहारें बुलाईं हैं
कर दूँ मुक्कमल जलती सुल्गती हयात को
या खुदा कुछ दिन जीने की इजाजत पाई है
सात जन्मों तक यूँ ही मोहब्बत करता रहूँ
तुमने नई जिन्दगी से मुलाकात जो कराई है
दूरियाँ ना बढ़ाना वरना मर जाऊँगा मैं तन्हा
मेरी हर साँसो में, रुह में तू ही तू समाई है
बन रहे हैं मोहब्बत के अफसाने आजकल
रमन ने भी शायद उनमें भूमिका निभाई है