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अधूरी जिन्दगी

अधूरी जिन्दगी

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अधूरी जिन्दगी स्याही बनकर रह गई
बक्त गुजर गया सिर्फ कल्पनाएँ रह गई
रब से दुआ थी नाजुक कलियाँ लहरा सकेँ
बहारों की चर्चा में बसंत पतझड़ बन गई
कोमल मन कारवाँ ए इश्क मेँ ठिठुरता रहा
वफाएँ लय बनकर मँझधार में वह गई

देखकर नीला गगन मन कुछ बोल उठता है
भावनाएँ परिन्दों संग हवा बनकर वह गई
मुहब्बतों का तो सिर्फ़ नाम ही रह गया
रमन की दुनिया कुर्बानी ए इश्क बन गई


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