ग़ज़ल
ग़ज़ल
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ऐसा न था कि पुकारे नहीं थे
वो सुनते ही क्यों जो हमारे नहीं थे।
हसरत तो थी, चाँद हो जाये मेरा
मुट्ठी में जुगनू थे, तारे नहीं थे।
कोशिश तो थी तैर कर पार कर लें
मौजें तो थी , पर किनारे नहीं थे।
फँसे भीड़ में पर अकेले रहे हम
रिश्ते तो थे , पर सहारे नहीं थे।
नही ले सके उनके रहमोकरम को
ज़रूरत तो थी , पर बेचारे नहीं थे।