ग़ज़ल
ग़ज़ल
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उम्मीदों ने छुआ है
इनायत है, दुआ है।
न प्यासा कोई होगा
पानी है, कुआँ है।
सूरज छुप न जाये
बादल है, धुआँ है।
लोग ख़ामोश से हैं
बोलो क्या हुआ है।
सभा में द्रौपदी है
दुःशासन है, जुआ है।
वो मीठा बोलता है
पिंजरे का, सुआ है।
जियें बरसों तलक
कैसी बद्दुआ है।