दिल की तन्हाई से
दिल की तन्हाई से
हर शाम ढलने पर चाहा है तुझे,
रात को सपने में पाने की उम्मीद से,
हर सुबहा तेरा अक्स पाया है,
अश्को को रोकती पलकों की नमी से।
हर सुबहा खुली है तेरे नाम से,
सुनहरी यादों को दिल में दबाते हुए,
आँखों को धोखा देते हैं हंसके,
कि सपना ही तो था रात की गहराई से।
माथे पे जलती हुई धूप में साया भी
छोड़ देता है साथ कहीं छुपते हुए,
तेरा क्या कसूर कहे हम,
कि वो आह भी निकली थी दिल की तन्हाई से।
शाम ने आँखों को कुछ ऐसे झुका दिया,
पलके भी चुप रही कुछ डरते हुए,
दिल को अब क्या समझाये,
दर्द की दवा,
सूरज भी छोड़ गया है चुपके से।
वो सुबहा, वो ही शाम, दिन और रात,
वो ही तन्हाई दिल को कहते हुए,
हर पल एक नया पल जीते हैं,
तेरी याद में, तेरे आने की एक उम्मीद से।