मेरे महबूब
मेरे महबूब
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सुबह की सुनहरी धूप और हाथों में हाथ तेरा
चांदनी रात में जैसे खुली बाँहों में तेरी होना मेरा
दोपहर की हवाओं में दुपट्टे से लिपटना तेरा
शाम की सर्द फ़िज़ाओं में साथ मेरे चलना तेरा
दिवानगी की हद से आगे निकल जाना तेरा
याद आ रहा है वो आँखों से बातें करना तेरा
वो लहरो के आगे यूँ थामे हाथ चलना तेरा
हाथों की गर्माहट को रूह तक पहुँचाना मेरा
जमाने भर में नाम लेके कुछ यूँ इतराना तेरा
ख़्वाबों को हकीकत बनाने को मचलना मेरा
यहीं आसपास महसूस होता है अक्स तेरा
समझ ले की बहुत ही खास है तू महबूब मेरा
