पृथ्वी
पृथ्वी
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हे जननी जन्मभूमी माँ शत्-शत् नमन करता हूँ
चरणों में मैं तेरे माँ
शीश अर्पित करता हूँ
कर श्रृंगार वृक्षों की
मनमोहक छवि बनायी हो
लिए गोद में लाखों लाल
झुला तुम्ही झुलाती हो
शीश पर तुम्हारे पर्वत माला
ओजल कभी नहीं करती हो
मानव सारे बना घरौदे
जीवों का हरण करते हैं
नित नयी घातक फैक्टरी खोल
क्षरण तुम्हारा करते हैं
नदियों का लहराता पानी
गोद में तुम्हारे समायी हैं
हे जननी जन्मभूमी माँ
शत्-शत् नमन करता हूँ...