हम तेरी कठपुतलियां रब्बा
हम तेरी कठपुतलियां रब्बा
हम तेरी कठपुतलियों की तरह, जैसे मर्ज़ी तू चलाई जा,
चाहे फूलों पर बिठा दे रब्बा चाहे अंगारों पर नचाई जा|
रंगीन करके चाहे फिर संगीन कर दे हमें दी ज़िन्दगी,
नाटककार की तरह अपने हिसाब से नाटक रचाई जा|
हमारे हर कदम की डोर तेरे हाथों में ही है साइयां,
चाहे संभाल ले अपनी उंगलियों से चाहे गिराई जा|
खेल खिलाने के बाद इनाम से भी तुमने ही नवाज़ना,
चाहे दिया भी वापिस ले ले चाहे रहमतें बरसाई जा|
कभी अच्छे किरदारों से मिलवाता तो कभी बुरों से,
चाहे दिलों में मोहब्बतें पैदा कर चाहे उनसे लड़ाई जा|
कर्मों के लिबाज़ भी तू पहनाता हालातों के हिसाब से,
चाहे मैला कर दे दामन चाहे मखमल में सजाई जा|
तू खत्म कर सकता है ये मजहबों के मीलों फासले,
अपने रंगमंच पर चाहे सुकून चाहे खून बहाई जा|
सबने अपनी समझ के हिसाब से तुझे भी बाँट लिया,
खुद आकर अपनी हकीकत बता चाहे सबसे छुपाई जा|