कैसा होगा भविष्य हमारा
कैसा होगा भविष्य हमारा
वक़्त बदल गया, लोगों के मिज़ाज बदल गऐ
आई ऐसी हवा, मन के विचार बदल गऐ
किस तरफ है बहते ज़माने की गति का रुख
ऐसी जागी भावनाऐं, लोग वहीं पर चल दिऐ
कोई सत्यता की खातिर गवाँ रहा ज़िंदगी अपनी
तो कोई असत्यता की खातिर बेच रहा ज़िंदगी अपनी
देश दुनिया में, समाज में ज़हर फैल रहा होगा
कोई मतलब की खातिर ईमान बेच रहा होगा
अनचाहे कर्मों मेँ हर शख्स व्यस्त रह रहा होगा
बनाये हुऐ सृष्टि के नियमों को तोड़ रहा होगा
नफरत ऐसी जन्म लेगी, तड़प को क्या सहा जाऐगा
इनसान बदल रहे होंगे,एहसास को क्या सहा जाऐगा
ना गुरु शिष्य का रिश्ता रहेगा
ना माँ बेटे का प्रेम रहेगा
बन जाऐगा मंज़र ऐसा यारों
बेटा बाप का क़त्ल करता फिरेगा
लोगों की फितरतें बदल जाऐंगी
ज़ुबाँ पर कड़वी वाणी वास करेगी
बडों की आज्ञा को ठुकराया जाऐगा
ऐसे मंज़र में क्या साँस ली जाऐगी
शिक्षा को मुद्राओं में तोला जा रहा होगा
संस्कृतियों का वजूद मिटाया जा रहा होगा
क्या लाभ हमारा मानव रुपी शरीर धारण करने का
जब हर शख़्स अनचाही सभ्यता में घुल रहा होगा
बदल जाऐंगे किताबों में रचित अनमोल वचन
मिट जाऐंगे तुलसीदास के द्वारा लिखित श्लोक
दुनिया में आग लगेगी, मंज़र को क्या देखा जाऐगा
हर तरफ कड़वाहट होगी, विचारों को क्या सुना जाऐगा
जब जनाज़ा लहराऐगा, अलग अलग लोग इकट्ठे होंगे
अपनों की अनुपस्थिति होगी, गमों को क्या सहा जाऐगा
अरे डरो ख़ुदा से जाना है उसके पास दोबारा
करो यारों कर्म ऐसा,सुधर जाऐ जीवन हमारा
कर दो त्याग बैर का, नफ़रत का,घृणा का
रखो कदम ऐसे, हो जाऐ वो जगह स्वच्छ दोबारा