झोरा (पोवारी कविता)
झोरा (पोवारी कविता)
नहानपनमा अजी
धरशान मोठो झोरा |
दुकानमालक आनं
मोरोसाती झगा कोरा ||१||
देखकर कोरा झगा
भरं खुशीबी मनमा |
देखु पेहरके आंदी
झगा आपलो तनमा ||२||
आनं मामाजी धरके
झोरा मा चिवळा लाळू |
खानसाती मायलाच
रव्हं चिपकेव बाळू ||३||
जावू धरके इस्कूल
पाटी पुस्तकको झोरा |
रव्हं सबको सामने
अभ्यासमा मोरो तोरा ||४||
माय लेन जाय भाजी
झोरा धरशानी हाट |
बजारको खाजोसाती
देखजन आमी बाट ||५||
झोरा धरके पिवरो
आवं पोस्टमेन गावं |
बाट देखती चिठ्ठीकी
जबं पुकारं वू नावं ||६||
उपयोगी असो झोरा
जास्त नाहाय दामला |
फाट जासे तरी आवं
झाडू पोछाको कामला ||७||