ओह, डैडी, यह बिल्कुल भी खाली नहीं है। मैं बॉक्स में चुंबन उड़ा दिया। ओह, डैडी, यह बिल्कुल भी खाली नहीं है। मैं बॉक्स में चुंबन उड़ा दिया।
क्या कबीर रो रहा था? क्या ये खुशी के आंसू थे जो अकस्मात मिली खुशी से छलक आए थे? क्या कबीर रो रहा था? क्या ये खुशी के आंसू थे जो अकस्मात मिली खुशी से छलक आए थे?
धीराविट पी. नात्थागार्न ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास धीराविट पी. नात्थागार्न ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
कबीर को गले लगाते हुए उसके गाल पर एक गहरा चुंबन भी जड़ दिया। कबीर को गले लगाते हुए उसके गाल पर एक गहरा चुंबन भी जड़ दिया।