Charumati Ramdas

Children Stories

3.5  

Charumati Ramdas

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वह ज़िंदा है....

वह ज़िंदा है....

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“वो ज़िन्दा है और चमक रहा है...”

 

लेखक: विक्टर द्रागून्स्की

अनु: आ. चारुमति रामदास


एक बार शाम को मैं आँगन में बैठा था, बालू के पास, और मम्मा का इंतज़ार कर रहा था. वह, शायद इंस्टिट्यूट में, या दुकान में अटक गई थी, या, हो सकता है कि उसे काफ़ी देर तक बस स्टॉप पर खडे रहना पड़ा हो. मालूम नहीं. सिर्फ हमारे आँगन में सभी के मम्मा-पापा आ चुके थे, और बच्चे उनके साथ अपने-अपने घर चले गए थे और, हो सकता है ब्रेड-रिंग्स और चीज़ के साथ चाय भी पी रहे हों, मगर मेरी मम्मा अभी तक नहीं आई थी...

अब तो खिड़कियों में रोशनी भी होने लगी, और रेडिओ से म्यूज़िक सुनाई देने लगा, और आसमान में काले बादल चलने लगे – वे दाढ़ी वाले बूढ़ों जैसे लग रहे थे...

मुझे भूख भी लग रही थी, मगर मम्मा का तो पता ही नहीं था, और मैं सोच रहा था कि अगर मुझे ये मालूम होता कि मेरी मम्मा को भूख लगी है और वह दुनिया के किसी कोने में मेरा इंतज़ार कर रही है, तो मैं फ़ौरन दौड़ता हुआ उसके पास आ जाता, बिल्कुल देर नहीं करता और उसे बालू पर बैठकर इंतज़ार करने और ‘बोर’ होने पर मजबूर न करता.  


इसी समय मीश्का आँगन में निकला. उसने कहा:

 “हैलो!”

और मैंने भी जवाब दिया:

 “हैलो!”

मीश्का मेरी बगल में बैठ गया और डम्प-ट्रक लेकर देखने लगा.

 “ओ हो!” मीश्का ने कहा. “कहाँ से लिया? और क्या ये ख़ुद बालू इकट्ठा करता है? ख़ुद नहीं करता? और ख़ुद गिराता है? हाँ? और हैण्डल? ये किसलिए? इसे घुमा सकते हैं? हाँ? ओ हो! मुझे घर ले जाने देगा?”

मैंने कहा :

 “नहीं, नहीं दूँगा. गिफ्ट है. पापा ने जाने से पहले मुझे दिया था.”


मीश्का ने मुँह फुला लिया और मुझसे दूर हट गया. आँगन में अंधेरा और गहरा हो गया.

मैं गेट की तरफ़ ही देख रहा था जिससे कि मम्मा के आने का मुझे फ़ौरन पता चल जाए. मगर वह आ ही नहीं रही थी. ज़ाहिर है कि उसे रोज़ा आंटी मिल गई हो, और वे दोनों खड़े होकर बातें कर रही हों, और मेरे बारे में सोच भी नहीं रही हों. मैं बालू पर लेट गया.


मीश्का ने कहा:

”डम्प-ट्रक नहीं देगा?”

 “छोड़ ना, मीश्का.”

तब मीश्का ने कहा:

”इसके बदले मैं तुझे एक ग्वाटेमाला और दो बार्बादोस दूँगा!”

मैंने कहा:

 “ ले, कर ले मुकाबला डम्प-ट्रक का बार्बादोस से...”

और मीश्का बोला:

 “अच्छा, मैं तुझे स्विमिंग-रिंग दूँ?”

मैंने कहा:

 “तेरी रिंग तो फूटी हुई है.”

मीश्का पीछे हटने को तैयार नहीं था:

 “तू उसे चिपका लेना!”

मुझे गुस्सा भी आ गया.

 “और तैरूँगा कहाँ? बाथरूम में? हर मंगलवार को? ”

मीश्का ने फिर से मुँह फुला लिया. मगर फिर बोला:

 “चल, जो चाहे सो हो! तू भी क्या याद करेगा! ले!”

और उसने मेरी ओर माचिस की डिबिया बढ़ाई. मैंने उसे ले लिया.

 “तू इसे खोलकर देख,” मीश्का ने कहा, “तब पता चलेगा!”

मैंने डिबिया खोली. शुरू में तो मुझे कुछ भी नज़र नहीं आया, मगर फिर देखी हल्की-हरी रोशनी, जैसे कि दूर, मुझसे बहुत दूर एक नन्हा-सा तारा चमक रहा है, और साथ ही मैं उसे अपने हाथों में पकड़े हुए हूँ.

 “ये क्या है, मीश्का,” मैंने फुसफुसाकर कहा, “ये क्या चीज़ है?”

 “ये जुगनू है,” मीश्का ने कहा. क्यों, अच्छा है ना? ये ज़िन्दा है, फिकर न कर.”

 “मीश्का,” मैंने कहा, “मेरा डम्प-ट्रक ले ले, लेना है? हमेशा के लिए ले ले, हमेशा के लिए! मगर मुझे ये नन्हा सितारा दे दे, मैं इसे घर ले जाऊँगा...”

मीश्का ने लपक कर मेरा डम्प-ट्रक ले लिया और घर भाग गया. मैं अपने जुगनू के साथ रह गया, उसकी ओर देखता रहा, देर तक देखता रहा, मगर जी ही नहीं भर रहा था: कैसा हरा-हरा है ये, जैसे किसी फेयरी-टेल में हो, और कैसे ये, हाँलाकि पास ही है, हथेली पर, मगर चमक इस तरह से रहा है, जैसे बहुत दूर हो...मैं ठीक से साँस नहीं ले पा रहा था, और मैं सुन रहा था कि मेरा दिल कैसे धड़क रहा है, और कोई चीज़ हौले-हौले नाक में चुभ रही थी, जैसे मैं बस रोने ही वाला हूँ.

मैं बड़ी देर तक इसी तरह बैठा रहा, खू-ऊ-ऊ-ऊ-ब देर तक. चारों ओर कोई भी नहीं था. मैं दुनिया की हर चीज़ के बारे में भूल गया था.

मगर तभी मम्मा आ गई मैं बहुत ख़ुश हो गया और हम घर की ओर चले. और जब हम ब्रेड-रिंग्ज़ और चीज़ के साथ चाय पीने लगे, तो मम्मा ने पूछा:

 “तो, क्या कहता है तेरा डम्प-ट्रक?”

और मैंने कहा:

 “मम्मा, मैंने उसे बदल लिया.”

मम्मा ने कहा:

”बहुत अच्छे! किस चीज़ से बदल लिया?”

मैंने जवाब दिया:

 “जुगनू से! ये रहा वो, डिबिया में रहता है. लाइट बन्द करो ना!”

और मम्मा ने लाइट बन्द कर दी, कमरे में अंधेरा हो गया, और हम दोनों मिलकर हल्के-हरे सितारे की ओर देखने लगे.

फिर मम्मा ने लाइट जला दी.

 “हाँ,” उसने कहा, “ये जादू है! मगर तूने अपनी इतनी कीमती चीज़ – डम्प-ट्रक, इस कीड़े से कैसे बदल ली?”

 “मैं इतनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था,” मैंने कहा, “मुझे इतना बुरा लग रहा था, और ये जुगनू, मुझे दुनिया के हर डम्प-ट्रक से ज़्यादा अच्छा लगा.”

मामा ने एकटक मेरी ओर देखा और पूछा:

 “ये ज़्यादा अच्छा क्यों लगा?”

मैंने जवाब दिया:

”तुम समझ क्यों नहीं रही हो, मम्मा?! ये ज़िन्दा है! और चमक रहा है!...”

....

   


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