वह सचमुच सितारा थी ...

वह सचमुच सितारा थी ...

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संस्मरण -

1998 की बात है. भारत की आज़ादी के ‘स्वर्ण जयंती’ वर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा था. तब में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में द्वतीय वर्ष की छात्रा थी. संगीत नाटक अकादमी की तरफ से भव्य पैमाने पर दिल्ली में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. अपनी अपनी विधा के पारंगत प्रथम कोटि के कलाकारों ने हिस्सा लिया था, जिनमें केलुचरण महापात्र से लेकर बिरजू महाराज तक शामिल हुए. इस कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के अलग अलग सभागारों जैसे कमानी, सीरी फोर्ट, यूनिवर्सिटी कैम्पस, एयरफोर्स ऑडिटोरियम आदि में हुए थे. जिसके लिए कई संस्थाओं से वालंटियर नियुक्त किये गए थे जो देश के हरेक हिस्से से आये कलाकारों को स्कॉट करते थे. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से मैं भी उनके लिए काम कर रही थी. मुझे कार्यक्रम में शिरकत करने वाले कलाकारों के साथ-साथ रहना होता था. उनकी देख-भाल और ज़रूरतों का ख्याल रखना होता था. यह मेरे लिए जितनी उत्साह की बात थी उतनी ही गर्व की. जिन कलाकारों को अब से पहले मैंने सिर्फ दूरदर्शन या अखबारों में देखा/पढ़ा था, आज उनसे रू-ब- रू होने और उन्हें करीब से जानने का मौका मिल रहा था. मैं बहुत खुश थी.

उस दिन ‘कमानी’ में सितारा देवी का कार्यक्रम था. ‘सितारा देवी’ यानी ‘कथक सम्राज्ञी’. बनारस घराने की सितारा देवी का नाम सुनते ही मन में कुछ होता है. जिनका नाम कथक इतिहास में एक बिंदास और खुदमुख्तार नर्तकी के रूप में शुमार है. सामान्य कद-काठी की महिला जिसने भारतीय कथक को वो आयाम दिलाया कि उसकी पहचान विदेशों तक बनी.

बचपन से ही सितारा देवी के बारे में इतना कुछ पढ़/सुन रखा था कि एक डर था मेरे अंदर कि उनका मर्तबा इतना ऊँचा है कि उनका सामना कैसे करूंगी. यह भी सुना था कि बहुत तुनकमिजाज़ हैं. बात बात पर गुस्सा करती हैं. उसमें सबसे भयानक जो उनके बारे में पढ़ा था वो था ‘सआदत हसन मंटो’ का ‘मीना बाज़ार’. जिसमें मंटो ने हिंदी सिनेमा की बड़ी हस्तियों से लेकर सितारा जी बारे में भी बड़ी बेबाकी से लिखा है. वैसे भी मंटो अपने बेबाकी के लिए ही जाने जाते हैं. जिसमें उन्होंने सितारा जी के बारे में लिखा था कि ‘सितारा जी कुख्यात और आदमखोर औरत हैं.’

खैर ! शाम को सितारा जी आयी, अपने साजिंदों के साथ. साधारण-सी हैंडलूम की साड़ी पहने. किसी भी आम भारतीय नारी की तरह दिखने वाली सितारा जी को देखने के बाद मेरा डर काफ़ूर हो गया. आते ही ‘ग्रीन रूम’ गयी. पान खाने की शौक़ीन पहले चाँदी की पान डिब्बी निकाल कर पान अपने मुंह में डाला और मुझसे कहा – ‘बंगाली मार्किट में पान बहुत अच्छा मिलता है. तनिक किसी को भेज के मंगवा दो.’

मैंने तुरंत उनके हुक्म की तामील की और एक आदमी को भेज कर उनके लिए पान मंगवाया. थोड़ी देर में गौर किया कि सितारा जी को चलने-फिरने में तकलीफ़ हो रही है. मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले उनका एक्सीडेंट हुआ था जिसमें पांव में फ्रेक्चर हुआ था. डाक्टर के अनुसार उन्हें पूरी तरह आराम करना चाहिए. नृत्य तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए.

मैंने पूछा- फिर आप नृत्य कैसे करेंगी? .

‘अरे! क्यूँ नहीं करूंगी. नृत्य के लिए धरती पर आयी हूँ. मालिक ने मुझे धरती पर भेजा और कहा- जाओ नाचो. नृत्य ही मेरा सब कुछ है. मेरा जीवन है. मेरा ईश्वर है..’

उनका जवाब सुनकर मैं हंस पड़ी. वह भी बच्ची की तरह मेरे साथ हंसने लगी. धीरे धीरे मैं उनके साथ सहज होने लगी. मैं उन्हें गौर से एकटक निहार रही थी. उनकी नृत्य के लिए तैयारी शुरू हो चुकी थी. उनका परिधान पहनना, श्रृंगार करना और सबसे उम्दा था उनका पाँव में घुँघरू बांधना ... सब कुछ इतना काव्यात्मक और संगीतमय था कि मैं उनमें कहीं खो गयी थी. एक्सीडेंट की वजह से वह जमीन पर बैठ नहीं पा रही थी. कुर्सी पर बैठकर ही उन्होंने घुँघरू बांधते देखना कला की और सभी विधाओं का एक अलग उदात्म् को देखने जैसा था. जैसे-जैसे वो तैयार हो रही थीं वैसे वैसे वो खूबसूरत होती चली जा रही थी. अति सुंदर, नवयौवना, षोडशी लग रही थीं.

झमझम करती जब मंच पर आयी तो कमानी हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा. दर्शकों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया. उस शाम उनके साथ तबले पर प. किशन महाराज जी संगत कर रहे थे. दोनों बचपन से एक दूसरे को जानते थे इसलिए बच्चों की तरह तू-तू, मैं-मैं और तकरार भी चल रही थी. नृत्य के बीच-बीच में वो बचपन की बातें भी बताती – ‘क्यूँ किशन भईया? हमको बचपन में आप जलेबी नहीं देते न. अब देखिये मैं कैसे नृत्य में आपको पछाड़ देती हूँ...’ और दोनों एक साथ बच्चों की तरह खिलखिलाकर हंस पड़ते.

पंडित किशन महाराज जी मंच पर खूब जँच रहे थे. दूध से गोरे, लाल-लाल गाल और माथे पर लाल सुर्ख गोल टीका जैसे बर्फीली पहाड़ों के पीछे से सूरज निकल रहा हो... काफ़ी रात तक सितारा जी नाचती रहीं. एक परन, एक दुकड़ा, एक बोल, एक कहरवा, एक दादरा, एक बंदिश करते करते रात के दस बज गये. दिल्ली में दस बजे के बाद दर्शकों को बाहर रुकने में जरा मुश्किल होने लगती है. काफी दूर दूर से आये दर्शक हॉल में उठने लगे और बाहर जाने लगे पर सितारा जी जिनके पैर के हालत ठीक नहीं थे. लंगडाती हुई. मंच पर आयी थीं, उसके बावजूद हिरनी की तरह कुलांचे मार रही थी. दर्शकों को लगभग ललकारती हुई बोलीं – ‘क्या बात है भाई, अभी तो रात जवान भी नहीं हुई और आप लोग महफ़िल से उठकर जाने लगे. अभी शबाब पर पहुंचना तो बाकी है. ऐसी क्या जल्दी है? क्या हो गया दिल्ली वालों को? पूछो हमारे किशन भईया से दिल्ली के कला के कद्रदान रात रात भर बैठकर हमें देखते और सुनते थे. काअऽ किशन भईया! ठीक कह रहे है हमs !’

हँसते हुए किशन महाराज जी ‘हाँ’ में सर हिला दिया. पर जिन्हें उठ के जाना था वो गए लेकिन बाकी दर्शक अपनी-अपनी जगह पर वापस पुन: बैठ गए. सितारा जी यह कहते हुए कि ‘यह हुई ना बात’ उसी उत्साह और उमंग के साथ नाचने लगीं. जैसे जैसे रात ढलती जा रही थी वो और भी जैसे जवान होती जा रही थीं. ऊर्जा और स्फूर्ति उनके अंग अंग से जैसे टपक रही थी.

आखिरकार तकरीबन 12 बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ. वह वापस ग्रीन रूम में आयीं. मैं उपहार और फूलों का गुलदस्ता उठाये उनके पीछे पीछे...

पहले उन्होंने अपने घुंघरू उतारे और बाद में गहने फिर कपड़े बदले. मैं उन्हें अभी तक जिज्ञासा से देख रही थी. उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा – ‘क्यूँ मज़ा आया? कैसा नाच किया?’.

काफ़ी देर से उनसे एक सवाल जो मुझे अकुला रहा था पूछने का मन कर रहा था लेकिन डर भी लग रहा था कि कहीं बुरा ना मान जाये, लेकिन उनके प्यार और स्नेह से हिम्मत करके पूछ ही बैठी –‘मंटो ने आपके बारे में जाने क्या क्या लिखा है. लिखा है कि आप आदमखोर हैं (मंटो के अनुसार सितारा जी बहुत ही दिलफेंक थी और बहुत सारे पुरुषों से दैहिक संबंध थे) क्या यह सच है? सवाल तो कर बैठी पर अंदर से घबरा गयी कि पता नहीं अब उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? कहीं आज की शाम न ख़राब हो जाये? पर मैंने देखा वो वैसे ही सहज बनी रहीं. जैसे कि ना मैंने कुछ पूछा ना उन्होंने कुछ सुना!

एक वक्त के बाद अपनी ख़ास अदा में इठलाती हुई बोली – “कौन मंटो? मैं नहीं जानती किसी मंटो-बन्टो को. अरे! मैं तो सिर्फ इतना जानती हूँ कि यह सितारा (ख़ुद की तरफ़ इशारा करके) बारह साल की उम्र से पैर में घुंघरू बाँधकर नाच रही है और मरते दम तक नाचती रहेगी. ....”

एक अलौकिक आत्मविश्वास और स्वाभिमान से उनका चेहरा किसी मशाल की लौ की तरह दमक रहा था और मैं एकटक निहारती रह गयी...

 


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