तस्वीर
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कुछ दिन पहले मैं अपने बचपन की कुछ तस्वीरों के साथ घिरी हुई बैठी थी। उसमे से एक तस्वीर थी जिसमें मैं हाथ में टूटा हुआ बिस्किट लेकर रोने में लगी पड़ी थी।
बात कुछयूँ थी कि मैं बैठी हुई रो रही थी। मेरे हाथ मे एक बिस्किट था, जो टूटा हुआ था।
“मुझे साबुत बिस्किट ही चाहिए, मैं नहीं खाऊँगी यह टूटा हुआ बिस्किट।”
“मुँह मे डालकर काट लिया तो टूटेगा ही। साबुत बिस्किट तो मुँह में भी नही आएगा।”
“मुझे नहीं पता, मुझे तो बस साबुत बिस्किट चाहिए।”
“अच्छा बाबा ले यह अपना पूरा जुड़ा हुआ बिस्किट।”
और इसी के साथ मेरे मुख पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती है।