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Neerja Pandey

Others

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Neerja Pandey

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तिरस्कृत

तिरस्कृत

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जल्दी जल्दी हाथ चलाते हुए सुमित्रा गरमागरम परांठे बनाकर सब को दे रही थी। सुबह का नाश्ता सब साथ ही करते थे । फटाफट परांठे सेंक कर सुमित्रा दोनों बेटे बहू और पति को दे रही थी सुबह की भाग दौड़ कुछ ज्यादा ही हो जाती है । सबको काम पे जाना होता। दोनों बेटे कमल नयनऔर पति को भेज कर सुमित्रा बैठी तो बहू ने आकर पूछा,

 'मां नाश्ता लाऊं?" 

हां कहने पर बहू ने आलू के परांठे लाकर समने रख दिया। नाश्ते के बाद चाय की चुस्कियां लेते हुए बहू संग बात में व्यस्त हो गई। दो दो बहू घर में होने के बाद भी रसोई की बागडोर सुमित्रा के हाथ में ही थी। ऐसा नहीं था कि बहुएं खाना नहीं बनाती थी या उन्हें आता नहीं था पर घर मैं सभी को सुमित्रा की है हाथ का खाना पसंद था। बहुएं सारी तैयारी खाना पकाने की कर देती परंतु पकाने का काम सुमित्रा का ही होता। अगर किसी दिन बहुएं खाना बना देती तो बेटे और पति सबकी शिकायत रहती भरपेट खाना नहीं खा पाया। लाख प्रयत्न के बाद भी सुमित्रा के सधे हाथों वाला स्वाद बहुओं के खाने में ना आ पाता। वे बहुत ज्यादा संपन्न नहीं थे परंतु घर में किसी चीज की कमी भी नहीं थी जिंदगी बहुत मजे में चल रही थी सुमित्रा की जिंदगी में प्यार करने वाला पति और आज्ञाकारी दो बहू में और दो बेटों की मां थी। बहुएं सुमित्रा से पूछे बिना छोटे से छोटा काम भी ना करती।सब कुछ राजी खुशी था।

रोज की तरह उस दिन में दोनों बेटों और पति को नाश्ता करा कर सुमित्रा ने काम पर भेज दिया और खुद नाश्ते के बाद चाय की चुस्कियां लेते हुए न्यूज पेपर के पढ़ रही थी। तभी मोबाइल की घंटी बजी सुनते हैं सुमित्रा बोली, "बहू जरा देख तो किसका फोन है"।

बहू फोन लेकर आई और बोली, "माजी पापा का फोन है "।

सुमित्रा ने यह कहते हुए कौन हाथ में लिया अरे !अभी तो जा रहे तब से फोन भी करने लगे 'हेलो' कहते हुए मोबाइल कान के पास लगाया उधर से पति की आवाज ना सुन कर घबरा गई और पूछी, "आप कौन हैं ?"

दूसरी तरफ से क्या कहा गया यह सुनते हैं सुमित्रा के हाथ से फोन नीचे गिर गया पास खड़ी बहू ने फोन उठाया और बात की दूसरी तरफ से बात करने वाले व्यक्ति ने कहा जिस किसी का भी यह कौन है उसे ट्रक वाले ने टक्कर मार दिया है और हम लेकर डिस्ट्रिक - हॉस्पिटल जा रहे हैं आप सब वही पहुंचे इतना कहकर फोन काट दिया गया। बहू ने तत्परता दिखाते हुए पति और देवर को फोन किया और हॉस्टल पहुंचने को कहा और खुद पड़ोसियों की मदद से सुमित्रा को लेकर हॉस्पिटल पहुंची।

वहां पहुंचते हैं तेज कदमों से लगभग दौड़ती हुई सुमित्रा अंदर की ओर भागी। वहां केदार बिस्तर पर लेटे थे उनकी आंखें बंद थी और डॉक्टर जांच कर रहे थे। थोड़ी देर बाद केदार नेआंख खोल कर देखा सुमित्रा पास बैठी थी। अपने आप को सैयमित करते हुए केदार में जेब में पड़े पैसे निकालें और सुमित्रा के हाथ पर रखा बोला, "कि वो कितने हैं "सुमित्रा ने गिना 720 थे यह पैसे उसकी मुट्ठी में रखते हुए केदार ने कहा, "मुझे माफ कर दो सुमित्रा मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सका और अब कुछ भी देवी ना सकूंगा मेरे पास वक्त नहीं है मैं जा रहा हूं"।

यह कहते हो उसने दोनों हाथ जोड़ लिए और उसकी आंखें सदा के लिए बंद हो गए कमल और नयन दोनों दौड़ कर गए और डॉक्टर को बुला कर ले आए डॉक्टर ने देखा और कहा, "आई एम सॉरी मैं इन्हें नहीं बचा पाया"।

इतना कहकर डॉक्टर चला गया बदहवास ही बैठी सुमित्रा कुछ समझ ही न पाए कि जिसे सुबह खिला पिला कर काम पर भेजा वह अचानक चला कैसे गया? यह स्वीकार करना के लिए बहुत कठिन था किसी तरह बहुओं ने उसे संभाला और घर आ गए। 

 सुमित्रा की दहाड़ मारती चीखें सबको रुला रही थी। जो कमल और नयन पिता की उपस्थिति में खुद को बालक ही समझते थे उनके ऊपर दी बड़ी जिम्मेदारी आप पड़ी पर उन्होंने खुद को संभाला और बुजुर्ग रिश्तेदारों की मदद से सब कुछ प्रबंध किया और सारे क्रिया कर्म निपटाए । कुछ समय पश्चात धीरे-धीरे करके जो भी रिश्तेदार आए थे वह सब चले गए और जिंदगी पुराने ढर्रे पर फिर से आ गई परंतु अब सुमित्रा रसोई में न जाती थी बहुओ सारा घर गृहस्थी अपने नियंत्रण में कर लिया।

अब सुमित्रा से किसी भी काम के लिए पूछना जाता धीरे धीरे उसकी उपेक्षा होने लगी और यह उपेक्षा आगे चलकर अपमान में परिवर्तित हो गई। सुमित्रा ने जब इस परिवर्तन को महसूस किया तो सोचा हो सकता है 'मैं अब अपने हाथ से खाना बना कर इन्हें नहीं खिलाती इसीलिए यह नाराज हो मन ही मन एक संकल्प कर सुमित्रा सो गई।'

सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर कर सुमित्रा रसोई में घुस गई और सबकी पसंद का नाश्ता बनाने लगी खटपट की आवाज सुनकर बड़ी बहू रसोई में दौड़ी आई और पूछा, 

"मां जी आप क्या कर रही हो ? क्या मैं ना बनाती जो आप बना रही हैं। या फिर रात भर भूख की वजह से सोना पाई जो सुबह ही रसोई में आ गई। यह सुनते हीं सुमित्रा का चेहरा अपमान से लाल हो गया पर अपने पर अपने चेहरे पर आए भाव को छुपाते हुए सुमित्रा मुस्कुराते हुए बोली,

' नहीं-नहीं बहू मैंने सोचा आज तुम सबको अपने हाथ का नाश्ता करा दूं बहुत दिनों से नहीं बनाया ना । कमल और नयन को मेरे हाथ का बना अच्छा लगता है।

 बहू बोली, "रहने दीजिए मां जी मैं बना लूंगी ।" इसके बाद वहां खड़ा रहना सुमित्रा के लिए मुश्किल हो गया और वह अपने कमरे में चली आई सबके खाने के बाद बहू नाश्ते की प्लेट लाकर उसके सामने पटक दिया और बोली,

"लीजिए मांजी खा लीजिए आपको भूख आजकल ज्यादा ही लग रही है।"

यह कहकर मुंह बनाते हुए चली गई। प्लेट बगल सरका कर का सुमित्रा लेट गई और बहुत कोशिशों के बाद भी अपनी आंख से बहते हुए पानी को वह ना रोक पाई। फिर उस दिन उससे ना खाया गया और किसी ने पूछने की जरूरत भी नहीं समझी।समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? कि घर में सबसे खुश रहें फिर सोचा हो सकता है अब मैं पहले जैसा खाना ना बना पाती हूं इसलिए अब मैं दूसरा कुछ काम कर दिया करूंगी और अगले दिन सुबह पूरे घर के गंदे कपड़े इकट्ठे कर कर धोने बैठ गई सारे कपड़े धुल डालें किसी ने कुछ नहीं कहा कि मां कपड़े क्यों धो रही हो ? परंतु उसे क्या पता था कि वह कपड़े नहीं हो रही है बल्कि इस घर से अपने जाने का प्रबंध कर रही हैं ।

सुमित्रा के ननद जो गांव में रहती थी उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी डॉक्टर को दिखाने के लिए आ गई । अभी कुछ कपड़े धोने को बाकी थे बाकी ही थे तभी उन्हें सामने देख अरे !जीजी कहती हुई सुमित्रा ने हाथ धोकर आगे बढ़ी और पांव छूकर पूछा, "आप कैसी हो?"

 वह बोली, "तबीयत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए डॉक्टर को दिखाने चली जाए पर तुम्हें क्या हुआ है ?कितनी कमजोर हो गई हो ! यह क्या हालत है? क्या बहुएं काम नहीं करती? जो तुम इतने सारे कपड़े धोने बैठी हो 

"कुछ नहीं जीज्जी" कहते हुए उन्हें अंदर ले जाकर कमरे में बिठाया परंतु वह तो सब कुछ आते ही पूछ लेना चाहती थी यह बताओ तुम इतने सारे कपड़े क्यों धो रही थी ? यह दोनों सारा दिन क्या करती है ?जो तुम इतने सारे कपड़े धो रही हो इससे पहले कि सुमित्रा कुछ कहती बहु पानी लेकर आ गई।

 बोली, "हां हां बुआ जी से सारी शिकायतें कर लीजिए कि हम आपसे घर का सारा काम करवाते हैं और खाना पीना भी नहीं देते"। 

 फिर बुआ जी की तरफ पास बैठते हुए बोली, "बुआ जी मैं क्या बताऊं ? जबसे पापा गए हैं तब से इन्हें संभालना बहुत मुश्किल है। हम कितने भी सेवा कर ले यह खुश होती ही नहीं । हम सारा दिन घर का काम करें कि इनकी चाकरी करें । रोज कोई न कोई तमाशा किए रहती है जीना मुश्किल हो गया है। आज देखो यह कपड़े लेकर बैठ गई ।"

तब तक छोटी बहू भी आ गई और जेठानी की हां में हां मिलाते हुए दोनों ने शिकायत शुरू कर दी अपमान सुमित्रा वहां से चली गई और फिर सामने ना आई । और नाही कोई उनके पास गया शाम को बुआ जी डॉक्टर को दिखा कर चली गई । इसके पश्चात कमल और नयन भी घर आ गए। आया तो देखा दोनों भरी बैठी है पहुंचते ही शिकायत शुरू कर दी आज मां ने ऐसा ऐसा किया । बुआ के सामने हमारी बड़ी बेइज्जती हुई दोनों तुरंत ही उठकर मां के कमरे में गए और कहने लगे,

" मां क्या तुमने कसम खा लिया है कि हमें चैन से नहीं जीने दोगी । हम सारा दिन थक कर आए तो तुम्हारा ड्रामा शुरू हो जाता है बहुत हो गया मां अब हमें चैन से जीने दो अगर नहीं रह पा रही हो हमारे साथ तो अपना कहीं और प्रबंध कर लो ।"

इतना कहकर दोनों बिना मां की कोई बात सुने चले गए ।

सुमित्रा, "सुन बेटा मेरी बात तो सुन कहती ही रह गई।"

वो रात सुमित्रा ने आंखों में ही काट दिया और निर्णय ले लिया कि अब मैं यहां नहीं रहूंगी । सुबह सब सो रहे थे तभी उठ गई और स्नान कर के भगवान के आगे हाथ जोड़ कर खडी हो गई,

 हे ! 'प्रभु मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं सम्मान के साथ बचा हुआ जीवन बिता सकूं।'

 इतना कहकर आखिरी बार पूरे घर को प्यार से देखा जिसकी छत और दीवार उसने और केदार ने मिलकर बड़े प्यार से बनाई थी।कभी सोचा ना था कि इस घर को इस तरह वह छोड़ेगी।

एक एक छोटे बैग में अपनी जरूरत का कुछ सामान और 2 जोड़ी कपड़े रखें और चुपचाप बाहर का दरवाजा चिपका कर निकल गई।जब सुमित्रा घर से निकली उस वक्त सूर्योदय नहीं हुआ था।बिना किसी फैसले के कि उसे किधर जाना है बस जिधर पांव ले चले उधर चलती गई चलते चलते सुनसान गलियां छोड़ कर वह हाईवे पर आ गई और तब तक चलती रही जब तक उसके पांव जवाब ना दे गए जब जब उसकी चेतना जागी तो उसने देखा दोपहर हो गई है और वह पसीने से लथपथ किसी ढाबे के सामने खड़ी है। अब उसके अंदर और चलने की हिम्मत ना बची थी। वही बने चबूतरे पर बैठ कर उसने कुछ देर आराम किया उसके बाद नल देखकर थोड़ा सा पानी पिया और मुंह धोया जिससे उसे कुछ राहत मिली। अब वह क्या करें यहीं बैठी बैठी सोच रही थी तभी उसने देखा तीन चार लोग एक शख्स को मार रहे हैं जैसे ही वह पिटने वाला व्यक्ति छूटने पाया दौड़ते हुए भाग गया फिर उससे यह लोग ना पकड़ पाए ।जब वह लोग पास आए तो सुमित्रा ने पूछा, "क्यों भैया क्या गलती की थी उसने ?क्यों मार रहे थे ?" 

तो वह बोले, "यह मेरे यहां ये खाना बनाता था आज ज्यादा बिक्री हुई और मैं पैसे छोड़कर नहाने चला गया उसी का फायदा उठाकर यह पैसे लेकर भाग रहा था।" 

ढाबा मालिक के सामने समस्या यह थी की ढेर सारे कस्टमर बैठे थे और उनका दिया आर्डर कैसे पूरा करें यह समझ नहीं आ रहा था क्योंकि कुक भाग चुका था। बैठे - बैठे ऊबते हुए कस्टमर या तो जल्दी आर्डर पूरा करो या पैसे वापस करो की मांग करने लगे थे। पैसे वापस करने का मतलब था अब यह सारे ग्राहक दोबारा उसके ढाबे पर नहीं आएंगे। वो खीझता हुआ इधर उधर फोन कर किसी खाना बनाने वाले की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहा था। सुमित्रा को आशा की एक किरण दिखाई दी । वह डरते डरते ढाबा संचालक के पास गए और बोली,

" बेटा मुझे थोड़ा समय दो मैं कोशिश करती हूं खाना बनाने की हो सकता है तुम्हें पसंद आ जाए।"ढाबा संचालक ने सोचा कुछ ना से हां जी सही कम से कम बेस्वाद हीं सही कम से कम ग्राहकों को उनका ऑर्डर तो मिल जाएगा यही सोच कर हां कर दी और बोला, "मां जी आइए मैं आपको रसोई दिखा दूं और जो सहयोग चाहिए ये लड़के आपकी करेंगे।'

 ये कहते हुए दो लड़कों को उसके पास कर दिया और बाहर आकर ग्राहकों को तसल्ली देने लगा कि बस थोड़ी ही देर में आप सब का ऑर्डर आ जाएगा। उधर रसोई में पूरे मनोयोग से सुमित्रा जुटी थी। लड़कों से लहसुन प्याज टमाटर का पेस्ट बनाने को बोलकर खुद हर ऑर्डर के हिसाब से खाना तैयार करने लगी। निपुण तो वो थी हीं। ज्यादा देर नहीं लगा खाना तैयार होने में। ढाबा संचालक ने तुरंत ही सब के पास भिजवा दिया और खाने के बाद जो प्रतिक्रियाएं मिली वो आश्चर्य जनक थी सभी ने बहुत तारीफ की कि आज के खाने में बेहद स्वाद था। ढाबा संचालक खुश हो गया और सुमित्रा के पास गया बोला,

" मां जी आपने मुझे मुसीबत से बचा लिया। मैं आपका शुक्रिया अदा कैसे करूं?" वो परिचय देते हुए बोला, "मेरा नाम शंकर है। मां जी आप कौन हैं ? और कहां से आई हैं?सुमित्रा ने अपनी पूरी कहानी बताई । बताते हुए उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली।

सुमित्रा बोली, "पर बेटा तुम चिंता मत करो मैं अभी शाम तक चली जाऊंगी।"शंकर भी सुमित्रा की आपबीती सुनकर द्रवित हो चुका था। सुमित्रा के आंसू पोंछते हुए बोला,

"मां जी आप कहीं नहीं जाएंगी। आपने मुझे बेटा कहा है और अभी मेरा ढाबा बंद होने से बचा लिया। मैं अनाथ हूं बचपन से ही मां के प्यार केलिए तरसा हूं।।हमेशा ही मुझे भगवान से शिकायत रहती थी कि उन्होंने मेरी मां छीन ली । आज उन्होंने मेरी यह शिकायत दूर कर दी और आपको भेज दिया। हम मां बेटा अब साथ रहेंगे और मिल कर ढाबा चलाएंगे।"

इस तरह काफी समय बीत गया। पर कमल और नमन ने मां को ढूंढने का कोई प्रयास नहीं किया। इधर सुमित्रा और शंकर के मेहनत और ईमानदारी से ढाबा बढते - बढते रिसाॅर्ट का रूप ले चुका है।शंकर बिना मां जी की आज्ञा के कुछ नहीं करता। सुमित्रा के आशिर्वादों से शंकर आच्छादित रहता है।

एहसास नहीं है मूर्खों को किवो क्या ठुकराते है,

मां की ममता वो चीज जिसे पाने की खातिर ईश्वर भी शीश झुकाते हैं

खून के इस जग में जब पानी हो जाते हैं

मुंहबोले रिश्ते तब आकर इंसानियत की लाज बचाते हैं!


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