तीसरा विश्वयुद्ध
तीसरा विश्वयुद्ध
भाई, जिनको उत्कंठा, प्रतीक्षा हो, तो हो, पर हमने तो तीसरा विश्व युद्ध देख लिया ,न सिर्फ देखा खूब डटकर लड़े भी। हमारे अकेले के मुकाबले दुश्मन सेना के कम से कम 100 सैनिक खेत रहे। अक्सर ऐसा ही होता है शत्रु हमला तभी करता है जब आप कहीं अधिक आनंद में डूब जाने के प्रयास में तल्लीन होते हैं , शाम की हुई जोर की बारिश और तेज हवाओं ने न केवल गर्मी से निजात दिलाई बल्कि मौसम भी ख़ासा खुशगवार बना दिया।
हम भी सुरमई शाम का मजा लेते हुए रात में चैन की नींद का सपना जागती आंखों से सजाने लगे थे।
मगर जैसा कि हमेशा होता है, शत्रु सेना ऐसे ही मौके की तलाश में रहती है और उन्हें हमारे संबंध में यह अवसर दिया हमारे महान बिजली विभाग ने, अब ज्योंही खा पीकर हम अपनी ख़ाबगाह की ओर बढ़े, लो भाई !बत्ती गुल ।अब जहां सब कुछ बिजली से चलता है कमबख्त हमने "कछुआ" भी खरीदना बंद कर दिया था, मगर क्या पता था कि हमारी छोटी सी भूल का ये कमबख़्त ऐसा निर्लज्ज और नाजायज फायदा उठाएंगे।
तो जनाब!अब आइए युद्ध पर। बस ज्यों ही हम बिस्तर पर पीठ के बल हुए, आंखें बंद की, बस, हमला शुरू दुश्मन का एक सैनिक भाला संभाले हमारी ओर बढ़ा लेकिन हम भी बस तैयार ही थे उसने ज्यों ही अपना बरछा हमें चुभाया, इससे पहले कि वह हमारे खून का एक कतरा भी बर्बाद कर पाता हमारा ब्रह्मास्त्र चल पड़ा ,और खेल खत्म ।
लेकिन यह तो बस शुरुआत हुई थी साहब !इसके बाद तो बस एक के बाद एक प्लाटून 10- 10 ,20 -20 के झुंड में हमलावर हो गए, लेकिन हम भी कहां पीछे हटने वाले थे मुकाबला डट कर किया, और करते रहे ।
चटाक-पटाक, चट-पट, हमारे हाथों के धमाकों से पूरा घर गूंजता रहा, और दुश्मन के सैनिक शहीद होते रहे,
बस समझ नहीं आ रहा था कि कमबख्त इनकी तादाद कितनी है, खत्म ही नहीं होते।
अपनी एक गजब की काबिलीयत का अंदाजा भी हमें आज ही हुआ, हालांकि सुना पहले भी था कि मुसीबत के वक्त हमारी छठी सातवीं सारी इंद्रियां कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाती है लेकिन आज हम को भी अंधेरे में दुश्मन का एक-एक सैनिक उसका हर दांव बिल्कुल साफ साफ दिखाई दे रहा था, जैसे आंखों में ही हैलोजन फिट हो गया हो।
रात के दूसरे पहर तक आते-आते दुश्मन की तादाद और बढ़ गई, हमले तेज होते गए हालांकि मुकाबले में हम अभी डटे हुए थे , मगर कुछ नींद की जरूरत और कुछ हमारी बेबसी में ,हमने बिजली के देवताओं को मन ही मन याद करना शुरु कर दिया था।
काश! कि अगर उनकी मदद मिल जाती तो हम यह युद्ध थोड़ा आसानी से जीत जाते, खैर वो मदद न मिलनी थी सो न मिली।
अब हमने कलेजा पक्का किया और बस जुट गए वार पर वार करने में एक के बाद एक दुश्मन के सैनिक शहीद होते रहे और हमारा हौसला बढ़ता रहा, हालांकि इस बीच कुछ कमबख्त थोड़े तेज निकले, और हमारे जिस्म से भी कुछ खून के कतरे निकाल ही ले गए ।
तो आखिर हुआ यूं! कि साहब, पौ फ़टते-फ़टते हमने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए, और मैदान-ए-जंग से उनके पांव उखड़ने लगे, तादाद घटने लगी।
अपनी विजय श्री के इस मंज़र को सामने देख अब हमारी छाती 56 इंच की होने लगी थी, मैदान को पूरी तरह साफ करने के बाद हम बड़े गर्व से दहाड़े-
" कमबख़्तों !आ गए ना औकात में, मच्छर हो मच्छर ही रहोगे !"
तभी मोहल्ले की मस्जिद से सुबह की अजान की आवाज से लगा जैसे युद्ध समाप्ति की का बिगुल बज गया हो ।हम भी प्रफुल्लित हो कर तैयार हुए और मॉर्निंग वॉक के लिए निकल लिए।।