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Dr.BRIJESH MAHADEV

Children Stories Inspirational

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Dr.BRIJESH MAHADEV

Children Stories Inspirational

सुशीला और आमिर चंद

सुशीला और आमिर चंद

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अमीर चंद्र की नई-नई शादी हुई और वह शादी की सुहागसेज पर बैठी पत्नी सुशीला के लिए जब भोजन का थाल लेकर अंदर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया। रोमांचित उस सुशीला ने अपने पति अमीरचंद से निवेदन किया कि "मांजी और पापा जी को भी यहीं बुला लेते तो हम चारो साथ बैठकर भोजन करते हैं ।" अमीर चंद ने कहा "छोड़ो उन्हें !! वो खाकर सो गए होंगे। आओ हम साथ में भोजन करते है प्यार से !!" इस बात पर अमिर चंद ने सुशीला से तुरंत तलाक लेने का फैसला कर लिया और तलाक लेकर उसने दूसरी शादी कर ली।

इधर सुशीला भी दूसरी शादी कर ली। दोनों अलग-अलग सुखी घर गृहस्थी बसा कर खुशी खुशी रहने लगे। सुशीला के दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील और आज्ञाकारी थे। जब वह स्त्री ६० वर्ष की हुई तो वह बेटों को बोली मैं चारो धाम की यात्रा करना चाहती हूँ ताकि तुम्हारे सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना कर सकूँ. बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनों माँ बेटे भोजन के लिए रुके और बेटे भोजन परोस कर मां से खाने की विनती करने लगे। उसी समय सुशीला की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे और गंदे से एक वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो इधर के भोजन और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजर से देख रहा था। उस को उस पर दया आ गईं और बेटों को बोली - "जाओ !! पहले उस वृद्ध को नहलाओ और उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिलकर भोजन करेंगे।" बेटे जब उस वृद्ध को नहलाकर कपड़े पहनाकर उसे उस स्त्री के सामने लाये तो वह स्त्री आश्चर्यचकित रह गयी वह वृद्ध वही अमिर चंद था जिससे उसने शादी की सुहागरात को ही तलाक ले लिया था. उसने उससे पूछा कि क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई तो उस वृद्ध ने नजर झुका के कहा -" सब कुछ होते हुए भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नहीं देते थे,मेरा तिरस्कार करते थे,मुझे घर से बाहर निकाल दिया।" सुशीला ने उस वृद्ध अमिर चंद से कहा कि इस बात का अंदाजा तो मुझे तुम्हारे साथ सुहागरात को ही लग गया था जब तुमने पहले अपने बूढ़े माँ बाप को भोजन कराने के बजाय उस स्वादिष्ट भोजन की थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए और मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आप ने अपने माँ बाप का तिरस्कार किया। उसी का फल आज आप भोग रहे हैं। जैसा व्यवहार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे उसी को देख-देख कर हमारे बच्चों में भी यह गुण आता है कि शायद यही परंपरा होती है। सदैव माँ बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है। जिस घर में माँ बाप हँसते है।वहीं ईश्वर(सुख-समृद्धि) बसते हैं।


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