D Kumar

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समाचार पत्रों का इतिहास

समाचार पत्रों का इतिहास

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समाचार पत्र या अख़बार, समाचारों पर आधारित एक प्रकाशन है, जिसमें मुख्यत: सामयिक घटनायें, राजनीति, खेल-कूद, व्यक्तित्व, विज्ञापन इत्यादि जानकारियां सस्ते कागज पर छपी होती है। समाचार पत्र संचार के साधनो में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। समाचार पत्र प्रायः दैनिक होते हैं लेकिन कुछ समाचार पत्र साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक एवं छमाही भी होतें हैं। अधिकतर समाचारपत्र स्थानीय भाषाओं में और स्थानीय विषयों पर केन्द्रित होते हैं।


समाचार पत्रों का इतिहास सबसे पहला ज्ञात समाचा रपत्र 59 ई.पू. का 'द रोमन एक्टा डिउरना' है। जूलिएस सीसर ने जनसाधरण को महत्वपूर्ण राजनैतिज्ञ और समाजिक घटनाओं से अवगत कराने के लिए उन्हे शहरो के प्रमुख स्थानो पर प्रेषित किया। 8वी शताब्दी में चीन में हस्तलिखित समाचारपत्रो का प्रचलन हुआ

अखबार का इतिहास और योगदान: यूँ तो ब्रिटिश शासन के एक पूर्व अधिकारी के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती है, लेकिन उसका स्वरूप अखबारों की तरह नहीं था। वह केवल एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा था। पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से 'बंगाल-गजट' के नाम से वायसराय हिक्की द्वारा निकाला गया था। आरंभ में अँग्रेजों ने अपने फायदे के लिए अखबारों का इस्तेमाल किया, चूँकि सारे अखबार अँग्रेजी में ही निकल रहे थे, इसलिए बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ पहुँच नहीं पाती थीं। जो खबरें बाहर निकलकर आती थींत्र से गुजरते, वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खिलाफ न तो मुकदमे होते और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जाता था। इन नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत में ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘नेशनल हेराल्ड', 'पायनियर', 'मुंबई-मिरर' जैसे अखबार अँग्रेजी में निकलते थे, जिसमें उन अत्याचारों का दूर-दूर तक उल्लेख नहीं रहता था। इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगला, उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहा, लेकिन उसका दायरा सीमित था। उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था। ऐसे में पहली बार 30 मई 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

यह पत्र साप्ताहिक था। ‘उदंत-मार्तंड' की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग। उन्हें काफी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था, ताकि अँग्रेजी सरकार के अत्याचारों की खबरें दबी रह जाएँ। अँग्रेज सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार करते थे। लूट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो जिस भी क्षेको भी एक नई दिशा मिली। अब लोगों तक देश के कोने-कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसम्बर 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार 'बंगदूत' का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियाँ जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दुबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएँ।

आजादी की लहर जिस तरह पूरे देश में फैल रही थी, अखबार भी अत्याचारों को सहकर और मुखर हो रहे थे। यही वजह थी कि बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई। लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से 'वंदे मातरम' पत्र निकाला। इन पत्रों ने युवाओं को आजादी की लड़ाई में अधिक-से-अधिक सहयोग देने का आह्वान किया। इन पत्रों ने आजादी पाने का एक जज्बा पैदा कर दिया। ‘केसरी’ को नागपुर से माधवराव सप्रे ने निकाला, लेकिन तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई।

उत्तर भारत में आजादी की जंग में जान फूँकने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में कानपुर से साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' का प्रकाशन आरंभ किया। इसमें देश के हर हिस्से में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारियाँ प्रकाशित होती थीं। इससे लोगों में आक्रोश भड़कने लगा था और वे ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए और भी उत्साहित हो उठे थे। इसकी आक्रामकता को देखते हुए अँग्रेज प्रशासन ने इसके लेखकों, संपादकों को तरह-तरह की प्रताड़नाएँ दीं, लेकिन यह पत्र अपने लक्ष्य पर डटा रहा।

इसी प्रकार बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से पत्रों का प्रकाशन होता रहा। उन पत्रों ने लोगों में स्वतंत्रता को पाने की ललक और जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। अगर यह कहा जाए कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ये अखबार किसी हथियार से कमतर नहीं थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

अखबार बने आज़ादी का हथियार प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है, आज़ादी की जंग में यह उतनी ही बंदिशों और पाबंदियों से बँधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही ये किसी की कमाई का जरिया ही। ये अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ आज़ादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थे, जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आज़ादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था, जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो। गाँधीजी ने भी ‘हरिजन’, ‘यंग-इंडिया’ के नाम से अखबारों का प्रकाशन किया था तो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 'अल-हिलाल' पत्र का प्रकाशन। ऐसे और कितने ही उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि पत्र-पत्रिकाओं की आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका का थी।

यह वह दौर था, जब लोगों के पास संवाद का कोई साधन नहीं था। उस पर भी अँग्रेजों के अत्याचारों के शिकार असहाय लोग चुपचाप सारे अत्याचर सहते थे। न तो कोई उनकी सुनने वाला था और न उनके दु:खों को हरने वाला। वो कहते भी तो किससे और कैसे? हर कोई तो उसी प्रताड़ना को झेल रहे थे। ऐसे में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत ने लोगों को हिम्मत दी, उन्हें ढाँढस बँधाया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे। भारतेंदु का नाटक ‘भारत-दुर्दशा’ जब प्रकाशित हुआ था तो लोगों को यह अनुभव हुआ था कि भारत के लोग कैसे दौर से गुजर रहे हैं और अँग्रेजों की मंशा क्या है।

भारत के प्रमुख हिन्दी समाचारपत्र हैं :-

हिन्दुस्तान (समाचार पत्र)

मिशन जयहिन्द

चौथी दुनिया

पाञ्चजन्य

नई दुनिया

नवभारत टाइम्स

आज

प्रभात खबर

अमर उजाला

प्रयुक्ति

जलते दीप

दैनिक जागरण

जनसत्ता

पंजाब केसरी

देशबन्धु

दैनिक भास्कर

हरिभूमि

राँची एक्सप्रेस

राजस्थान पत्रिका

स्वतंत्र भारत

दीपशील भारत

उगता भारत

दैनिक हिन्दुस्तान हिन्दी का दैनिक समाचार पत्र है। यह 1932 में शुरु हुआ था। इसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था।

1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन छिड़ने पर `हिन्दुस्तान' लगभग 6 माह तक बन्द रहा। यह सेंसरशिप के विरोध में था। एक अग्रलेख पर 6 हजार रुपये की जमानत माँगी गई। देश के स्वाधीन होने तक `हिन्दुस्तान का मुख्य राष्ट्रीय आन्दोलन को बढ़ावा देना था। इसे महात्मा गाँधी व काँग्रेस का अनुयायी पत्र माना जाता था। गाँधी-सुभाष पत्र व्यवहार को हिन्दुस्तान' से अविकल रूप से प्रकाशित किया।

हिन्दुस्तान' में क्रांतिकारी यशपाल की कहानी कई सप्ताह तक रोचक दर से प्रकाशित हुई। राजस्थान में राजशाही के विरुद्ध आंदोलनों के समाचार इस पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे। हैदराबाद सत्याग्रह का पूर्ण `हिन्दुस्तान' ने समर्थन किया।

देवदास गाँधी के मार्गदर्शन में इस पत्र ने उच्च आदर्शों को अपने साथ रखा और पत्रकारिता की स्वस्थ परम्पराएँ स्थापितकी। गाँधीजी के प्रार्थना प्रवचन पं जवाहरलाल नेहरू व सरदार वल्लभ भाई पटेल के भाषण अविकल रूप से `हिन्दुस्तान' में छपते रहे। दैनिक `हिन्दुस्तान' का पटना (बिहार) से भी संस्करण प्रकाशित हो रहा है।

मिशन जयहिन्द समाचारपत्र (Mission Jaihind Newspaper) एक हिंदी भाषीय पाक्षिक समाचारपत्र है, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से प्रकाशित किया जाता है, तथा प्रसार पूरे भारत में है। मिशन जयहिन्द समाचारपत्र के मुख्य संपादक ,मोहित गौतम हैं, तथा इसके संस्थापक भी हैं। मिशन जयहिन्द का पहला प्रकाशन/ संस्करण २०१४ में प्रकाशित किया गया था।

चौथी दुनिया एक समाचार पत्र समूह है। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। यह हिन्दी, उर्दू में समाचारपत्र निकालता है

पाञ्चजन्य भगवान विष्णु का शंख है। विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण पाञ्चजन्य नामक एक शंख रखते थे ऐसा वर्णन महाभारत में प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीता जो कि महाभारत का अङ्ग है उस में वासुदेव द्वारा कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान इसका इस्तेमाल किया जाना बताया गया है।

भागवत पुराण के अनुसार सान्दीपनी ऋषि के आश्रम में कृष्ण की शिक्षा पूरी होने पर उन्हें गुरू दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने कहा समुद्र में डूबे हुये मेरे पुत्र को ले आओ। श्री कृष्ण द्वारा समुद्र तट पर जाकर शंखासुर को मारने पर उसका खोल (शंख) शेष रह गया था। उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। शायद उसी शंख का नाम पाञ्चजन्य था।

पाञ्चजन्य विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है। इसके कुछ अर्थ इस प्रकार हैं:

1. श्रीकृष्ण के शंख का नाम

2. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राष्ट्रवादी साप्ताहिक हिन्दी पत्र : पाञ्चजन्य (पत्र)

3. पाँच सर्वाधिक प्राचीन क्षत्रिय जातियाँ


नईदुनिया नईदुनिया मिडिया लिमिटेड द्वारा संचालित एक दैनिक हिन्दी समाचार पत्र है। भारत की स्वतन्त्रता से कुछ दिन पूर्व 5 जून 1947 को इसकी स्थापना इन्दौर में हुई।

"नई दुनिया" का प्रकाशन इंदौर से ५ जून १९४७ को कृष्णचन्द्र मुदकल तथा कृष्णकांत व्यास के सद्प्रयत्नों से आरम्भ हुआ। उस समय यह एक छोटा सा सायंकालीन दैनिक था। मध्यप्रदेश बनने के बाद `नई दुनिया' ने अपने रायपुर (१९५२) और जबलपुर (१९५९) संस्करण प्रारम्भ किये लेकिन वे १९७१ में बन्द कर दिये गए। हालांकि बाद में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद नई दुनिया का रायपुर और बिलासपुर संस्करण का प्रकाशन आरंभ हुआ।

`नई दुनिया' की भव्य साज-सज्जा, सरल भाषा, उत्कृष्ट सम्पादकीय तथा ताजा समाचारों ने उसे न केवल मध्यप्रदेश का सर्वाधिक प्रसारित पत्र बना दिया बल्कि उसे देश के श्रेष्ठ हिन्दी दैनिकों की श्रेणी में बिठा दिया है। इसके प्रधान सम्पादक राहुल बारपुते ने पत्रकारिता के श्रेष्ठ आदर्श, मानदण्ड स्थापित किये। इसके अलावा स्व राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी जैसे देश के नामचीन पत्रकारों ने भी नई दुनिया से अपनी पहचान बनाई। मध्यप्रदेश में अनेक साहित्यकार, लेखक, कवि इस पत्र के साथ जुड़े हुए हैं। भारतीय भाषाओं के बड़े समाचार पत्रों में उत्कृष्ट छपाई के लिए कई पुरस्कार `नई दुनिया' को मिले हैं। देश के हिन्दी दैनिक समाचार-पत्रों में `नई दुनिया' ने सर्व प्रथम आफसेट मुद्रण पद्धति अपनाई। राजेन्द्र माथुर भी इसके प्रधान सम्पादक रहे हैं।

नवभारत टाइम्स दिल्ली और मुंबई से प्रकाशित होने वाला एक दैनिक समाचार पत्र है। इसकी प्रकाशक कम्पनी बेनेट, कोलमैन एवं कम्पनी है, जो द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इकनॉमिक टाइम्स, महाराष्ट्र टाइम्स जैसे दैनिक अखबारों एवं फ़िल्मफ़ेयर एवं फेमिना जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन भी करती है। नवभारत टाइम्स इस समूह के सबसे पुराने प्रकाशनों में से एक है।

दिल्ली में करीब 4.23 लाख की प्रसार संख्या और 19.7 लाख की पाठक संख्या के साथ यह अखबार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में छाया हुआ है। हिन्दी मुम्बई में चौथे नम्बर की भाषा मानी जाती है, इसके बावजूद ग्रेटर मुम्बई क्षेत्र में नवभारत टाइम्स की प्रसार संख्या 1.3 लाख और पाठक संख्या 4.7 लाख है। इन दोनों शहरों में शुरू से ही नवभारत टाइम्स प्रथम स्थान पर है।

आज हिन्दी भाषा का एक दैनिक समाचार पत्र है। इस समय `आज' वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर, पटना, इलाहाबाद, तथा रांची से प्रकाशित हो रहा है। इस पत्र की स्थापना भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिव प्रसाद गुप्त ने ५ सितम्बर १९२० को की थी। कुछ वर्षों (१९४३ से १९४७ तक) को छोड़कर पण्डित बाबूराव विष्णु पराडकर १९२० से १९५५ तक ‘आज’ के सम्पादक रहे।

हिन्दी-समाचार पत्रों के इतिहास में 'आज' का प्रकाशन उल्लेखनीय घटना थी। काशी के बाबू शिवप्रशाद गुप्त हिन्दी में ऐसे दैनिक पत्र की कल्पना लेकर विदेश भ्रमण से लौटे (१९१९ ई) जो 'लन्दन टाइम्स' जैसा प्रभावशाली हो। गुप्तजी ने ज्ञानमण्डल की स्थापना की और ५ सितम्बर १९२० ई. को 'आज' का प्रकाशन हुआ और प्रकाशजी इसके प्रथम सम्पादक बने। १९२४ ई से लेकर १३ अगस्त १९४२ ईं तक पराड़करजी 'आज' के प्रधान सम्पादक रहे। इन तीन दशकों में `आज' और पराड़करजी ने हिन्दी पत्रकार-कला को नया स्वरूप, नई गति और नई दिशा प्रदान की। `आज' ने हिन्दी पत्रकारिता का मानदण्ड स्थापित किया। दिल्ली से काशी तक अपना हिन्दी दूरमुद्रण यन्त्र लगाने वाला यह पहला पत्र था। `आज' ने हिन्दी को अनेक नये शब्द प्रदान किए। इनमें सर्वश्री, श्री, राष्ट्रपति मुद्रास्फीति, लोकतन्त्र, स्वराज्य, वातावरण, कार्रवाई, अन्तर्राष्ट्रीय और चालू जैसे शब्द हैं। लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से जन्मा `आज' महात्मा गाँधी के आन्दोलनों का अग्रदूत बना। सत्यग्रहियों की नामावलियों को छापने का साहस केवल 'आज' ने किया। ब्रिटिश शासनकाल में सरकार के कोप व दमन के कारण 'आज' का प्रकाशन रुका तो साइक्लोस्टाइल में 'रणभेरी' का प्रकाशन कर पराड़करजी ने राष्ट्रीय जागरण की गति को मन्द पड़ने नहीं दिया।

'आज' के अग्रलेखों और टिप्पणियों ने 'आज' के महत्त्व को बढ़ाया। 'आज' के अग्रलेख लेखकों में सर्वश्री सम्पूर्णानन्द, आचार्य नरेन्द्र देव और श्रीप्रकाश भी थे। सन् १९३० के बाद पं कमलापति त्रिपाठी भी सम्पादकीय लेखकों में शामिल हो गए। पराड़करजी तथा कमलापतिजी के प्रभावी अग्रलेखों ने इस पत्र को हिन्दी का श्रेष्ठ दैनिक बना दिया। भाषा तथा शैली की दृष्टि से भी 'आज' ने असंख्य पाठकों को अच्छी हिन्दी सिखाई। 'आज' में 'खुदा की राह पर' शीर्षक से नियमित व्यंग्य का स्तम्भ रहता था जिसके लेखकों में सूर्यनाथ तकरु और बेढब बनारसी प्रमुख थे। `आज' से बेचन शर्मा 'उग्र' का साहित्यिक जीवन प्रारम्भ हुआ। 'उग्र' इसमें व्यंग्य लिखते थे। प्रेमचन्द, जयशंकरप्रसाद, डॉ॰ भगवानदास जैसे मनीषी भी इसमें लिखते थे। राष्ट्रीय आन्दोलन और समाज सुधार का यह प्रबल समर्थक रहा है। 'आज' में वर्मा, थाइलैण्ड, मारिशस स्थित संवाददाताओं के समाचार नियमित रूप से छपते रहते हैं। गाँव की चिठ्टी, चतुरी चाचा की चिठ्ठी इसके विशेष गोचर रहे हैं। जिलों और नगरों के विशेष संस्करण निकालना `आज' की अपनी विशेषता है। 'आज' के सम्पादकों के नाम हैं- सर्वश्री प्रकाश, बाबूराव विष्णु पराडकर, कमलापति त्रिपाठी, विद्याभास्कर, श्रीकांत ठाकुर, रामकृष्ण रघुनाथ बिडिलकर। वर्तमान में शार्दूल विक्रम गुप्त इस पत्र के सम्पादक हैं।

प्रभात खबर  राँची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, पटना, कोलकाता, सिलीगुड़ी, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और गया से प्रकाशित होने वाला हिन्दी भाषा का एक दैनिक है

अमर उजाला हिन्दी का एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है। इसका प्रारम्भ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आगरा से १८ अप्रैल सन १९४८ को हुआ था।


यह समाचार पत्र उत्तर भारत के अनेक नगरों सें प्रकाशित होता हैं। जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, चण्डीगढ, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली व जम्मू कश्मीर शामिल हैं।

सन् १९४८ में डोरीलाल अग्रवाल तथा मुरारीलाल माहेश्वरी ने आगरा से `अमर-उजाला' का प्रकाशन प्रारंम्भ किया। १९६७ में इसका बरेली संस्करण भी शुरु हुआ। यह पश्चिमी उत्तरप्रदेश के आगरा, बुलन्दशहर, अलीगढ़, मथुरा, बरेली आदि जिलों का लोकप्रिय पत्र है। ११ दिसम्बर १९६८ से `अमर उजाला' का मेरठ से भी प्रकाशन होना लगा है।

`अमर उजाला' (आगरा) के प्रबन्ध सम्पादक अनिल कुमार अग्रवाल तथा स्थानीय सम्पादक अजय कुमार अग्रवाल हैं। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के प्रमुख जिलों में सबसे अधिक लोकप्रिय पत्र `अमर उजाला' ही है। साज-सज्जा, समाचार प्रस्तुतीकरण, समाचार लेखन बहुत ही सुन्दर है। आज अमर उजाला बहुत बड़ा अखबार है।

प्रयुक्ति भारत का एक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र है। यह भारत के दिल्ली, हरियाणा आदि राज्यों के विभिन्न नगरों से प्रकाशित होता है। सच सोच समाधान प्रयुक्ति की टैगलाइन हैयह समाचार पत्र उत्तर और दक्षिण भारत में प्रकाशित होता है। प्रयुक्ति के 2 संस्करणों दिल्ली में, हैदराबाद में 1 संस्करण, उत्तर प्रदेश में 3 संस्करण, हरियाणा में 2 संस्करण, तेलंगाना में 10 संस्करण है।

दैनिक जलतेदीप भारत का एक हिंदी दैनिक समाचारपत्र है। जो राजस्थान प्रदेश के जोधपुर ज़िले से प्रकाशित होता है तथा इसका मुख्यालय भी जोधपुर में ही है। दैनिक जलतेदीप राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े नगर जोधपुर से सन् 1969 से निरंतर प्रकाशित हो रहा है।[1] केन्द्र सरकार के डीएवीपी व राज्य सरकार के विज्ञापनों हेतु दैनिक जलतेदीप को राज्य स्तरीय समाचार पत्र की मान्यता प्रदान की हुई है। जोधपुर के इस पुराने दैनिक की राजस्थान प्रदेश के पश्चिमी अंचल में विशेष लोकप्रियता एवं प्रभाव है। बारह पृष्ठ में ऑफसेट व फोटों कम्पोजिंग पद्धति से मुद्रित तथा राज्य के अधिकांश जिलों में इसका नित्य वितरण होता है। 26 जनवरी वर्ष 1999 से प्रकाशित इसका जयपुर संस्करण राजधानी जयपुर एवं आस पास में रहने वाले पश्चिमी राजस्थान के लोगों का प्रतिनिघि संवाहक है।

अनुभवी संपादकों की टीम एवं अपने स्वयं के दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, अजमेर, कोटा, कार्यालयों से आधुनिक संचार सुविधाओं से जुड़ा दैनिक जलतेदीप जयपुर आधारित प्रमुख दैनिकों की भांति ही राजस्थान का एक सम्पूर्ण अखबार है।

जलते दीप उन अग्रणी दैनिक समाचार पत्रों में से है जो फर्स्ट ऑन रोटरी (1978), फर्स्ट ऑन ऑफसेट (1984), फर्स्ट ऑन कंप्यूटराइज्ड, डीटीपी (1988) और फर्स्ट ऑन 8 पेज शेप (1989) पर प्रकाशित हुआ था।

जलते दीप एकमात्र प्रकाशन है जो स्थानीय मारवाड़ी भाषा में एक पूर्ण पृष्ठ देता है। कोई अन्य प्रकाशन इस तरह की सामग्री नहीं देता है जो व्यापक रूप से पढ़ी जाती है।

1997 से दैनिक जलते दीप, जर्दा, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला, शराब और पहेलियों के विज्ञापनों को नहीं प्रकाशित करने का फैसला करके सामाजिक सरोकारों की शुरुआत करने वाला देश का पहला अखबार है।

दैनिक जलते दीप को वर्ष 1981 से MANAK ALANKARAN के रूप में जाने जाने वाले पत्रकारिता पुरस्कार की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। अब तक 38 पत्रकारों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

दैनिक जागरण उत्तर भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय समाचारपत्र है। पिछले कई वर्षोँ से यह भारत में सर्वाधिक प्रसार संख्या वाला समाचार-पत्र बन गया है। यह समाचारपत्र विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला दैनिक है। इस बात की पुष्टि विश्व समाचारपत्र संघ (वैन) द्वारा की गई है। वर्ष 2008 में बीबीसी और रॉयटर्स की नामावली के अनुसार[4] यह प्रतिवेदित किया गया कि यह भारत में समाचारों का सबसे विश्वसनीय स्रोत दैनिक जागरण है।\

जनसत्ता इंडियन एक्सप्रेस समूह का हिन्दी अख़बार है। इसकी स्थापना इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली के संपादक प्रभाष जोशी ने की थी। १९८३ में शुरू हुए इस अखबार ने रातों रात सबको पीछे छोड़ दिया और इसके कई संस्करण निकले। इसके सम्पादक मुकेश भारद्वाज हैं। जनसत्ता कोलकत्ता, चंडीगढ़ और रायपुर से भी निकलता है।

हिन्दी पत्रकारिता को नया आयाम देने वालों में दिल्ली से प्रकाशित दैनिक 'जनसत्ता' का नाम अग्रणी है। खोजपूर्ण पत्रकारिता को नए तेवर देने का श्रेय यदि किसी पत्र को दिया जा सकता है तो वह है-`जनसत्ता'। अपनी विशेष शैली, आम भाषा, तेज-तर्रार सम्पादकीय लेखों तथा समाचारों के प्रस्तुतीकरण ने इसे न केवल दिल्ली का बल्कि पूरे देश का लोकप्रिय पत्र बना दिया और उसे ही कुछ वर्षों में श्रेष्ठ हिन्दी दैनिक पत्रों में ला खड़ा किया।

खोज खबर, गपशप, किताबें, अर्थात्, इस पत्र के सर्वाधिक लोकप्रिय स्तम्भ हैं। इसका रविवारीय संस्करण `रविवारीय जनसत्ता' विविध सामियक सामग्री से परिपूर्ण है। सामयिक लेख, कविता, कहानी, नन्ही दुनियां, जोगलिखी, देखी-सुनी, महिला जगत्, आदि इसके नियमित स्तम्भ हैं।


पंजाब केसरी भारत का प्रमुख हिन्दी दैनिक समाचार पत्र है। यह भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों के विभिन्न नगरों से प्रकाशित होता है। बे,मौसम हुयी बरसात से फसली नुकसान की भरपाई के लिए जिलाधिकारी के त्वारित निर्देश की समीक्षा रिपोर्ट!

जनपद-गोंडा

वैश्विक महामारी के संक्रमण से बचने बचाने के लिए जूझ रही समूची मानव श्रृंखला की जीविका के लिए अन्न की आपूर्ति करने वाले किसानों के माथे पर सिकन अच्छे संकेत नही देती! 1 मई को लगातार हुयी बरसात से तमाम किसानों की खड़ी अथवा कटी गेंहू की सफलों पर बुरा असर पड़ा हालांकि अगले दिन तासीर की गर्माहट और प्रशासन द्वारा राहत पहुंचाने की घोषणा से थोड़ी तसल्ली तो हुयी मगर कुछ सवाल जो किसानों की मायूसी दूर नही कर पा रहे उन सवालों का हल तलाशने की गुरेज इसलिए है ताकि किसानों के हल उनके खेतों में चल सकें। बरसात की वजह से हुए फसली नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन की तरफ से सभी उपजिलाधिकारियों को जारी किये निर्देश में फसली नुकसान का सर्वे करने का आदेश दिया गया है साथ ही हेल्प लाइन नम्बर भी सार्वजनिक किये हैं ताकि जिन किसान भाइयों की फसलें नष्ट हुयी हैं वे सभी अपनी शिकायतें दर्ज करा दें ताकि उनकी नष्ट हुयी फसलों की भरपाई फसल बीमा योजना के तहत कराया जा सके।विदित रहे की प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना के तहत भरपाई की जायेगी इसके लिये किसी प्रकार विशेष राहत की अफवाहों पर बिलकुल ध्यान न दिया जाय ज्ञताव्य है की फसली बीमा एक ऐसी योजना है जिसमे बीमा की किस्तें निरन्तर किसानो के खाते से काटी जा रही है इसकी न कोई रसीद दी जाती है और न ही इसके प्रीमियम की किसी को जानकारी होती है केवल बैंक के स्टेटमेंट से ये जाना जा सकता है की किसानों के खाते से बीमा की राशि काटी गयी है।सीधे तौर पर अगर लिखा जाय तो फसलों पर दैवीय प्रकोप अथवा अन्य कारणों से नुकसान होने की घटनाये कभी कभार ही होती हैं इन आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई पूर्ण नही आंशिक होती है किन्तु बीमा के नाम पर समस्त किसानों के खाते से बीमा किस्तें निरन्तर काटी जाती है!प्रशासन द्वारा जारी सर्वे आदेश के बाद अब किसान बन्धुओं के बीच एक मध्य रेखा की चर्चा समाने आ रही है।बताया जा रहा है की सर्वे में उन्ही किसानों का आंकड़ा जुटाया जा रहा है,जो के.सी.सी.के माध्यम फसली ऋण लिए हुए हैं।शेष जो मध्यम अथवा बड़े किसान है उनके नुकसान की भरपाई नही की जा सकेगी!ऐसे में जिन बड़े व मझोले किसानों की फसलें सैकड़ों क्विंटल गेंहू की सफल बर्बाद हुयी है उनकी चिंता गहराती नज़र आ रहीं है।

देशबन्धु हिन्दी भाषा में प्रकाशित एक समाचार पत्र है। इसकी स्थापना १९५९ में रायपुर में की गयी, जो अब छतीसगढ़ की राजधानी है।

दैनिक भास्‍कर भारत का एक प्रमुख हिंदी दैनिक समाचारपत्र है। भारत के 12 राज्‍यों (व संघ-क्षेत्रों) में इसके 65 संस्‍करण प्रकाशित हो रहे हैं। भास्कर समूह के प्रकाशनों में दिव्य भास्कर (गुजराती) और डीएनए (अंग्रेजी) और पत्रिका अहा ज़िंदगी भी शामिल हैं। 2015 में यह देश का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला समाचार-पत्र बना।

हरिभूमि हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाला एक दैनिक समाचार पत्र है जो भारत में हरियाणा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रकाशित होता है। इसकी स्थापना १९९६ में हुई जो वर्तमान में हरियाणा में रोहतक से, छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, रायपुर एवं रायगढ़ से, मध्य प्रदेश में जबलपुर से और दिल्ली से प्रकाशित होता है। हरिभूमि ग्रुप की शुरुआत 5 सितंबर 1996 को साप्ताहिक हिंदी पत्रिका के रूप में हुई थी। बाद में नवंबर 1997 में यह दैनिक हिंदी अखबार के रूप में हरियाणा से रोहतक एडिशन के रूप में लांच किया गया। रोहतक एडिशन के जरिए पूरे हरियाणा राज्य की खबरें प्रकाशित की जाने लगीं।

अप्रैल 1998 में हरिभूमि मीडिया ग्रुप ने दिल्ली संस्करण की शुरूआत की और दिल्ली के साथ फरीदाबाद और गुड़गांव की खबरें प्रकाशित की जाने लगीं।

मार्च 2001 में हरिभूमि ग्रुप ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया और बिलासपुर एडिशन की शुरूआत की। जून 2002 में बिलासपुर औऱ रायपुर में ग्रुप के ऑफिस शुरू किए गए। रायपुर एडिशन ने उड़ीसा के भी काफी क्षेत्र की खबरें प्रकाशित करनी शुरू कीं।

अक्टूबर 2008 में मध्य प्रदेश से हरिभूमि जबलपुर की शुरूआत की गई। इसी साल छत्तीसगढ़ में रायगढ़ एडीशन की भी शुरूआत की गई।

राँची एक्सप्रेस झारखंड प्रान्त से प्रकाशित हिन्दी दैनिक है

राजस्थान पत्रिका हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाला एक भारतीय समाचार पत्र है। यह अखबार भारत के सात राज्यों से प्रकाशित हो रहा है। यह जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा और सीकर सहित कई अन्य क्षेत्रों से राजस्थान से प्रकाशित होता है और राजस्थान के अलावा भोपाल, इन्दौर, जबलपुर, रायपुर, अहमदाबाद, ग्वालियर, कोलकाता, चेन्नई, नई दिल्ली और बंगलौर से प्रकाशित होता है।


राजस्थान पत्रिकाका आरंभ १९५६ में उधार के ५०० रुपये पूँजी से एक शाम को प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र के रूप में हुआ था। स्वर्गीय श्री कर्पूर चन्द्र कुलिश ने 7 मार्च 1956 को राजस्थान पत्रिका की आधारशिला रखी। उससे पहले वो उस समय के मुख्य समाचार पत्र राष्ट्रदूत के लिए कार्य किया करते थे। उस समय राजस्थान में अन्य दो समाचार पत्र लोकवाणी और नवयुग प्रमुख पाठक दल में शामिल थे, जो दोनों ही दिल्ली आधारित समाचार पत्र थे।

1964 में यह समाचार पत्र सुबह प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र बना। पत्रिका ने अपना प्रथम जोधपुर संस्करण 1981 में प्रकाशित किया और अपने उदयपुर प्रकाशन के साथ इन्होंने एक और मील का पत्थर रखा। कोटा संस्करण मार्च 1986 और बीकानेर संस्करण अगस्त 1987 में जोड़े गये। सन 2000 में नयें संस्करण भीलवाड़ा, सीकर, श्रीगंगानगर आरम्भ हुए। 11 अगस्त 2002 को अहमदाबाद संस्करण और इसी वर्ष 28 अक्टूबर अजमेर संस्करण और वर्ष 2003 में सूरत संस्करण को इस सूची में शामिल किया गया।

स्वतंत्र भारत लखनऊ एवं कानपुर से प्रकाशित हिंदी का एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र है।

१५ अगस्त १९४७ को लखनऊ से 'स्वतन्त्र भारत' का प्रकाशन अशोक जी के सम्पादन में हुआ। प्रारम्भ में ही इसने अवध की संस्कृति, लोग जीवन और इतिहास पर बहुत ध्यान दिया। दैनिक व्यंग्य विनोद का स्तम्भ काँव-काँव इसकी विशेषता थी। अशोक जी और बलदेव प्रसाद मिश्र इस स्तम्भ के मुख्य लेखक रहे। सन् १९५३ में अशोक जी के केन्द्रीय सूचना विभाग में चले जाने पर सहकारी योगेन्द्र पति त्रिपाठी ने इसका सम्पादन सम्भाला और ३१ अगस्त १९७१ ई॰ को अपनी असामयिक मृत्यु तक इसे बड़ी योग्यता से चलाया। उत्तरप्रदेश की राजनीति में इस पत्र का अच्छा प्रभाव है। काँव-काँव, अग्रलेख टिप्पणी, व्यंग्य-चित्र, देश चक्र, देश-देशान्तर, विदेश-चर्चा, आपके विचार, सुझाव-शिकायत, राज्यों की चिठ्ठियां आदि इसके स्थायी स्तम्भ हैं।

दीपशील भारत सन् 1996 में मान सिंह राजपूत एडवोकेट तथा मोहन सिंह राजपूत ने आगरा से `दीपशील भारत' का प्रकाशन प्रारंम्भ किया। वह पश्चिमी उत्तरप्रदेश के आगरा, मथुरा, एटा, अलीगढ़, फ़िरोज़ाबाद और लखनऊ आदि जिलों और राजस्थान राज्य के भरतपुर और धौलपुर में वितरित किया जाने वाला एक लोकप्रिय पत्र है। दीपशील भारत का इंटरनेट संस्करण 26 मई 2015 को शुरू किया और www.issuu.com/deepsheelbharat पर उपलब्ध है। दीपशील भारत समाचारपत्र की साज-सज्जा, समाचार प्रस्तुतीकरण, समाचार लेखन बहुत ही सुन्दर है।

उगता भारत एक हिन्दी समाचारपत्र है। इसका प्रारम्भ उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर से 17 जुलाई 2010 को किया गया था। इस पत्र को दो तरह से प्रकाशित किया जाता है, एक साप्ताहिक के रूप में जो कि प्रत्येक सप्ताह के रवीवार को प्रकाशित होता है और एक दैनिक पत्र के रूप में। यह अंतर्जाल पर ई-पेपर तथा ऑनलाइन वैबसाइट के तौर पर भी उपलब्ध है।

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प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है, आजादी की जंग में यह उतनी ही बंदिशों और पाबंदियों से बँधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही ये किसी की कमाई का जरिया ही। ये अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ आजादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थे, जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आजादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था, जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो। गाँधीजी ने भी ‘हरिजन’, ‘यंग-इंडिया’ के नाम से अखबारों का प्रकाशन किया था तो मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 'अल-हिलाल' पत्र का प्रकाशन। ऐसे और कितने ही उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि पत्र-पत्रिकाओं की आजादी की लड़ाई में महती भूमिका थी।


यह वह दौर था, जब लोगों के पास संवाद का कोई साधन नहीं था। उस पर भी अँग्रेजों के अत्याचारों के शिकार असहाय लोग चुपचाप सारे अत्याचर सहते थे। न तो कोई उनकी सुनने वाला था और न उनके दु:खों को हरने वाला। वो कहते भी तो किससे और कैसे? हर कोई तो उसी प्रताड़ना को झेल रहे थे। ऐसे में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत ने लोगों को हिम्मत दी, उन्हें ढाँढस बँधाया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे। भारतेंदु का नाटक ‘भारत-दुर्दशा’ जब प्रकाशित हुआ था तो लोगों को यह अनुभव हुआ था कि भारत के लोग कैसे दौर से गुजर रहे हैं और अँग्रेजों की मंशा क्या है।


अखबार का इतिहास और योगदान: यूँ तो ब्रिटिश शासन के एक पूर्व अधिकारी के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती है, लेकिन उसका


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स्वरूप अखबारों की तरह नहीं था। वह केवल एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा था। पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से 'बंगाल-गजट' के नाम से वायसराय हिक्की द्वारा निकाला गया था। आरंभ में अँग्रेजों ने अपने फायदे के लिए अखबारों का इस्तेमाल किया, चूँकि सारे अखबार अँग्रेजी में ही निकल रहे थे, इसलिए बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ पहुँच नहीं पाती थीं। जो खबरें बाहर निकलकर आती थीं। उन्हें काफी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था, ताकि अँग्रेजी सरकार के अत्याचारों की खबरें दबी रह जाएँ। अँग्रेज सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार करते थे। लूट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो जिस भी क्षेत्र से गुजरते, वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खिलाफ न तो मुकदमे होते और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जाता था। इन नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत में ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘नेशनल हेराल्ड', 'पायनियर', 'मुंबई-मिरर' जैसे अखबार अँग्रेजी में निकलते थे, जिसमें उन अत्याचारों का दूर-दूर तक उल्लेख नहीं रहता था। इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगला, उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहा, लेकिन उसका दायरा सीमित था। उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था। ऐसे में पहली बार 30 मई, 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।


यह पत्र साप्ताहिक था। ‘उदंत-मार्तंड' की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग को भी एक नई दिशा मिली। अब लोगों तक देश के कोने-कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसंबर, 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई, 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार 'बंगदूत' का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियाँ जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दोबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएँ।


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आज़ादी की लहर जिस तरह पूरे देश में फैल रही थी, अखबार भी अत्याचारों को सहकर और मुखर हो रहे थे। यही वजह थी कि बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई। लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से 'वंदे मातरम' पत्र निकाला। इन पत्रों ने युवाओं को आज़ादी की लड़ाई में अधिक-से-अधिक सहयोग देने का आह्वान किया। इन पत्रों ने आजादी पाने का एक जज्बा पैदा कर दिया। ‘केसरी’ को नागपुर से माधवराव सप्रे ने निकाला, लेकिन तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई।


उत्तर भारत में आजादी की जंग में जान फूँकने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में कानपुर से साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' का प्रकाशन आरंभ किया। इसमें देश के हर हिस्से में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारियाँ प्रकाशित होती थीं। इससे लोगों में आक्रोश भड़कने लगा था और वे ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए और भी उत्साहित हो उठे थे। इसकी आक्रामकता को देखते हुए अँग्रेज प्रशासन ने इसके लेखकों, संपादकों को तरह-तरह की प्रताड़नाएँ दीं, लेकिन यह पत्र अपने लक्ष्य पर डटा रहा।



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