प्यारा उपहार
प्यारा उपहार
"आ गये...."
आटा सने हाथों से दरवाज़ा खोलकर चहकी शालू।
कुणाल को खाली हाथ देख शालू का मन ही मन उदास कुछ हुआ और कुछ कुछ नाराज़ भी।
"सुनो शालू। खाना तैयार हो तो लगा ही लो भई।"
बड़े ज़ोरों की भूख लगी है।" कुणाल ने चेंज करते हुए आवाज़ दी।
कुछ ही देर में वे प्रतिदिन की भांति खुद रसोई में आकर खाना लगाने में मदद करने लगे। सरल हृदय कुणाल आज के युग में भी आज के नये तौर तरीकों से अनजान थे।
" इतनी चुप- चुप क्यों है मेरी जानू"
शालू के हाथ पर हाथ रखा कुणाल ने।
" कुछ नहीं" और शालू चुपचाप खाने के बाद बर्तन समेटने में जुट गई।
साल भर में न कभी प्यार के इज़हार में उपहार, न कभी फूल न और कोई गिफ्ट। बस कोरा सूखा नीरस प्यार। यह भी कोई जीवन है।
परन्तु शालू करे भी तो क्या। ये भोला नादान बालमा न जाने जी की बात..
"हुंह.... रात के ग्यारह बजे तक जनाब को याद नहीं शादी की पहली सालगिरह।"
"आज का प्यारा सा दिन मुबारक हो मेरी प्रिंसेस को" कुणाल ने पीछे से आकर शालू को अपने आलिंगन में ले लिया।
"छोड़िए भी। जाइए हम आप से गुस्सा हैं। आपको तो इतना विशेष दिन भी याद नहीं रहा।"
"न कोई सरप्राइज़ ! न गिफ्ट ! "
अपनी बांहों में समेटकर प्यार की बौछारों से सराबोर कर के वे बोले - "इससे प्यारा तोहफ़ा होता है क्या दुनिया में शालू। "
शालू अपने प्रियतम की भोली अदा पर मर मिटी और मुस्कुरा दी। सारा गुस्सा काफूर हो गया। पति के उपहार पर फिदा हो उनकी बांहों में सिमटती गई..... पिघलती गई।।
