परिवार के साथ बिताए अनमोल पल
परिवार के साथ बिताए अनमोल पल
25 तारीख, सर्द जनवरी का महीना, मुझे आज भी याद है, बेशक इस दिन को बीते 35 साल हो गए है, लेकिन आज भी वो दिन, वो पल, वो मँज़र मेरी आँखो के सामने है, इक पल के लिए भी नहीं भूल पाई मै वो दिन-पल।
जब मै शादी के बाद पहली बार मायके पग फेरे के लिए गई थी, जैसे ही गाडी़ ने गली में enter किया, सामने नज़र पडी़ तो पापा, मम्मी, बहने, भाई, भाभी सब इन्तज़ार करते नज़र आए, बहुत अच्छा लगा ये सब देखकर। गाडी़ पास पहुँचते ही सब लपके गाडी़ की तरफ, जैसे हर कोई चाहता हो कि पहले वो मिले मुझसे। उसके बाद सब घर के अंदर ले गये।
जाते ही सीधे मै अपने कमरे में गई, सब कुछ वैसा set किया हुआ मेरा कमरा... सब कहने लगे... देख तेरा कमरा, तेरा सामान सब वैसे ही रखा है, किसी ने नही छुआ, तेरे सब पैन, तेरे key rings, तेरे goggles, सब उसी जगह पर है, जो चाहे अपना सामान तुम ले जाना, सब तुम्हारा था, तुम्हारा ही है, मै अपने सामान को देखे जा रही थी।
मेरे पति और बाकी रिश्तेदारो को दूसरे कमरे में बैठाया गया, चाय-पानी के बाद खाने के लिए कहा गया तो मैने कहा... मुझे भूख नही है, अभी तो इतना कुछ खाया, मुझसे खाना नही खाया जाएगा... तो Di ने बताया कि सब मेरी पसंद का खाना पापा ने खुद अपने हाथो से बनाया है, इतना सुनते ही मेरी आँखे नम हो गई, इतना प्यार देख कर मै झट से पापा से लिपट गई, जो ना जाने कब से एक तरफ खडे़ बस मुझे एक टक निहारे जा रहे थे।
पापा ने खाना भी खाने की मेज़ पर नहीं बल्कि अपने कमरे में लगवाया था। पापा सबको अपने कमरे में ले गये, मैने देखा तो हैरान रह गई इतना सारा खाना हर एक चीज़ थी मेरी पसंद की एक-आध चीज़ तो ऐसी थी कि बाज़ार में बहुत ही मुश्किल से मिली थी, पापा सारा शहर घूम कर मेरी ही पसंद की चीज़े लाए थे, मैंने सब चीज़े चखी कि पापा ने कितनी मेहनत से बनाया सब, ये सब मेरे परिवार का प्यार था।
वो पल, वो क्षण, वो दिन मै एक पल के लिए भी नहीं भूल सकती, आज पापा नहीं है, वो पल याद आते ही आँखे भी नम होती है और खुशी भी होती है, उस प्यार को याद करके।