Ruby Mandal

Children Stories Classics Inspirational

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Ruby Mandal

Children Stories Classics Inspirational

पेड़ पौधों और मस्ती भरे पल।

पेड़ पौधों और मस्ती भरे पल।

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रिया और रोहन की गर्मी की छुट्टियां पड़ गई थी, सुबह से लेकर शाम तक दोनों टीवी देखते या तो वीडियो गेम ही खेलते रहते । शेखर और सुमन (उनके पापा-मम्मी) रिया और रोहन की घर में बैठकर टीवी देखने और गेम खेलने की आदत से परेशान थे । पिछले वर्ष जो लॉकडाउन पूरे देश में लगा, उससे बड़े ही नहीं बच्चों के शरीर पर भी बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा ।वह खेलने बाहर नहीं जा पाए और घर के खेलों तथा टीवी और वीडियो गेम के द्वारा ही उन्होंने अपना सारा समय घर में बीताया, जिससे उन्हें वीडियो गेम की लत लग चुकी थी।

एक दिन सुमन के मन में विचार आया क्यों ना बच्चों को पेड़ पौधों के प्रति जागरूक किया जाए और उनसे पेड़ पौधे लगवाए जाएं तथा उन्हें उनके महत्व के बारे में बताएं और किस प्रकार सुमन और उसके दो भाई गर्मी की छुट्टियों में माता -पिता के साथ गांव जाया करते थे और कलम- गाछी में सारा- सारा दिन बीताया करते थे। खेत खलिहान को देखकर उनमें सैर करके तथा वृक्षों के फलों को तोड़ने और कच्ची कैरी खाने में जो आनंद आता था, उस आनंद को बच्चों को बताया जाए। 

कुछ समय सोचने के बाद सुमन ने फिर विचार किया कि गांव में पेड़ पौधे और खेत खलिहान के बारे में बताने से पहले क्यों ना उन्हें उस बचपन के बारे में पहले बताया जाए, जो उन्होंने शहर में बीताया था और किस प्रकार सुमन के माता - पिता शहर में रहते हुए भी घर के आंगन में तरह-तरह के फूल, फल और सब्जियों के पौधे व पेड़ लगाया करते थे, और वृक्षों को तथा पौधों को पानी और खाद देने का कार्य उन तीनों भाई बहन की जिम्मेदारी होती थी।

अगले दिन जब दोपहर में रिया और रोहन वीडियो गेम खेल रहे थे, तब सुमन ने कहा - तुम दोनों का बचपन तो बहुत ही बोरिंग है, पूरे दिन सिर्फ बैठे रहते हो और टीवी देखते हो नहीं तो वीडियो गेम खेलते हो, तुम्हारे बचपन से अच्छा तो हमारा बचपन था।

रिया और रोहन सुमन की बातें सुन रहे थे, रोहन कहता है- मम्मी आप जब छोटी थी तो अपनी गर्मियों की छुट्टियां कैसे बीताया करती थी?

सुमन देखती है कि बच्चे उसकी बातों में ध्यान दे रहे हैं, तो वह कहती हैं - हम भी टीवी देखा करते थे पर उसका एक समय निर्धारित होता था पूरे दिन टीवी के सामने हम नहीं बैठा करते थे।अब रिया कहती है आप पूरे दिन गर्मी की छुट्टी में क्या करती थी।

सुमन दोनों को अपने पास में बैठाती है और कहती है- गर्मियों की छुट्टियां हमारी तुम्हारी नानी की सहायता मे व्यतीत होती थी । हमारे घर के पास एक बहुत बड़े क्षेत्र में खेती हुआ करती थी, काॅलोनी में तब खेत के पास वाले खाली मैदान में हम सभी काॅलोनी के बच्चे इक्कठा हो कर पेड़ों की छाया में सारा दिन खेला करते थे। और खेतों में उन दिनों आम के वृक्षों में फल लदे हुए होते थे, कच्ची कैरी देखकर ही मुंह में पानी आ जाता था, और नीचे मैदान में खरबूजे और तरबूज की बेले पसरी होती थी।

हमारी गर्मी की छुट्टियां मई से लेकर जून तक पड़ा करती थी। जब पके हुए तरबूज ट्रैक्टरों में भरे जाते थे, तब हम सभी बच्चे वहां पहुंच जाया करते ।खेत का मालिक हम सभी बच्चों से पूछता - क्या हुआ तरबूज खाओगे, ? हम सभी बच्चे हां में सिर हिलाते।

तभी रोहन पूछता है - मां आप सब काॅलोनी के कुल कितने बच्चे खेतों के पास जाया करतें थे?

तभी रोहन पूछता है- मां आप सब काॅलोनी के कितने बच्चे खेतों के पास मैदान में खेलने जाया करते थे?

सुमन - हम सभी लगभग पंद्रह- सोलह बच्चे तो होते ही थे, जिनमें से पांच लड़कियां और बाकी सब लड़के थे।

रिया- तो क्या आप सभी को अंकल तरबूज दे दिया करते थे ?

सुमन - मुस्कुराते हुए, हां सभी को देते थे, वो एक तरबूज को आधा - आधा करके दो बच्चों को दिया करते थे। इस तरह वह कई तरबूज हम बच्चों में बांट दिया करते थे, और कहते थे और तरबूज चाहिए क्या ? तो जाओ अपनी मम्मियों से पूछ कर आओ कि क्या तुम सब खेतों में तरबूजों को तोड़कर टैक्टर में लाद सकते हो, और इसके बदले मैं तुम सबको यानी एक - एक बच्चे को पांच पांच तरबूज घर ले जाने के लिए दूंगा और जितना मर्जी तरबूज तुम सब बच्चे खेत में ट्रैक्टर भर जाने के बाद ट्रैक्टर के जाने पर और फिर ट्रैक्टर के आने तक के बीच के समय में जितना मर्जी हो तरबूज खा लेना, हम सभी बच्चे बड़े उत्साह के साथ उनके खेतों में जाने के लिए और उनकी मदद करने के लिए,  मम्मी-पापा को किसी भी प्रकार से मना ही लिया करते थे। और थोड़ी देर बाद खेतों और आम के बगानों में हम सभी बच्चे इकट्ठा हो जाया करते थे और बड़े मजे के साथ कभी आम के पेड़ों पर चढ़ते और कभी खेतों में दौड़ - दौड़ कर एक दूसरे को पकड़ते, ट्रैक्टर के आने पर सभी बच्चे बड़ी मेहनत के साथ तरबूजों को उनकी बेलो से अलग करते, और ट्रैक्टर पर खड़े अंकल की और फेंकते और वह अंकल उन तरबूजों को जल्दी-जल्दी ट्रैक्टर में भर लेते ट्रैक्टर के खेत से बाहर जाते ही जिस भी बच्चे को भूख लगी रहती थी, वह तरबूज को बेल से अलग करता और पटक कर उसके दो भाग कर देता और हाथ धोकर खूब मजे से खाता, बहुत ही मजा आता था जब सभी बच्चे एक साथ इकट्ठा हुआ करते थे हरे भरे खेत के बीच में आम की छांव में आम की झुकी हुई टहनियों को पकड़कर झूला झूलते थे। ऐसा नहीं था कि खेत के मालिक मजदूर नहीं रखा करते थे हमारे साथ मजदूर भी तरबूजों को तोड़कर

ट्रैक्टरों में भरा करते थे पर हम बच्चे अपने आनंद के लिए उनके साथ वह कार्य किया करते थे और जब सारे दिन की मेहनत के बाद शाम के समय एक बच्चे को पांच - पांच तरबूज मिला करते थे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता था, बहुत खुशी से हम घर पर जाकर बताते थे कि हमने किस तरह खेतों में काम किया और अपनी मेहनत से पांच पांच तरबूज लेकर आए हैं।

रोहन बड़े आश्चर्य से पूछता है- नाना - नानी जी आप सबको डांटा नहीं करते थे।

सुमन- तुम्हारी नानी तो पहले बहुत गुस्सा करती और कहती - इस खेत के मालिक ने सभी बच्चों से अपना काम कराने का अच्छा तरीका निकाला है बच्चों को तरबूज का लालच देकर सारा-सारा दिन मजदूरों की तरह काम ले लेता है और शरारती बच्चे हमारी तो एक नहीं सुनते हैं, इन्हें तो बस अपनी मन की करनी रहती है। क्या! मैं यह तरबूज खरीद के नहीं खिला सकती तुम सबको जो तुम उस खेत में इतनी धूप में पूरे दिन खटने जाते हो, एक रुपए किलो मिलते हैं यह तरबूज जिसके लिए तुम पूरा दिन खेतों में मटरगश्ती करते फिरते हो, आने दो आज पापा को सबकी शिकायत करूंगी।

रिया- अब तो नाना जी आप सबको, रात को आने पर बहुत डांटते होंगे?

सुमन- अरे! नहीं नहीं वह तो नानी जी सारा दिन हमें घर में नहीं देख पाती थी इसीलिए थोड़ा गुस्सा किया करती थी, नाना जी के आते आते तो नानी जी का सारा गुस्सा ठंडा हो जाया करता था।

जब नाना जी आते थे तो नानी उन्हें सारी बात बताती तो थी पर नाना जी हमारा ही पक्ष ले लिया करते थे। कहते थे - करने दो ना यह बच्चे भी तो समझें कि पहले हम सब कैसे खेत में काम किया करते थे, पेड़ पौधों को उगाने और उन्हें फल देने लायक बनाने के बाद, खाने योग्य फल कितनी मेहनत के बाद प्राप्त होते हैं गर्मियों की छुट्टियां चल रही है पूरे दिन घर में रहकर टीवी देखने से तो अच्छा है कि खेलने में थोड़ा मेहनत करना भी सीखते हैं और किसी की थोड़ी मदद करना ही सीख जाते हैं इससे बच्चों की एकता और भाईचारे की भावना भी बढ़ती है और साथ में पेड़ पौधों के प्रति जानकारी भी मिलेगी।

रोहन-तो क्या आप सारी गर्मी की छुट्टियों में खेत में ही तरबूज तोड़ा करते थे?

सुमन- नहीं नहीं ! वह तो मात्र दो दिन या तीन दिन के लिए ही हम अपने मन के अनुसार किया करते थे।

रिया- फिर आप हर साल की गर्मियों की छुट्टी में और क्या-क्या किया करती थी।

सुमन- सब क्या आज ही जान जाना चाहते हो, मुझे अभी सबके लिए  रात का खाना बनाना है तो मैं अपनी बचपन की और गर्मियों की छुट्टियों की बातें कल फिर से बताऊंगी, पर उसके लिए तुम्हें कल मेरे साथ गार्डन में पौधों की देखभाल करनी होगी, पौधों में पानी देना होगा और खाद भी डालना पड़ेगा।

रिया और रोहन- हां, मां हम कल गार्डन में आपकी मदद करेंगे और पौधों की देखभाल भी करेंगे। पर आप अपनी बचपन की और भी कहानियां हमें सुनाएंगी, प्रॉमिस।

सुमन- हां, हां पक्का वाला प्रॉमिस! पर अभी तुम बाहर अपने दोस्तों के साथ गार्डन में जाकर खेलो।

रिया और रोहन - अच्छा ठीक है। (दोनों मुस्कुराते हुए, घर के बाहर दोस्तों के साथ खेलने चले जाते हैं)

सुमन के चेहरे पर भी मुस्कुराहट का भाव आ जाता है और वह सोचती है कि आज उसने अपने बचपन की बातों के द्वारा बच्चों को प्रकृति के प्रति कुछ जानकारी दे पाई, और रात का भोजन बनाने के लिए सुमन रसोई घर में चली जाती है। 

अगले दिन सुबह के समय सात बजे रिया और रोहन सुमन के साथ बगीचे में पौधों को पानी दे रहे थे और पेड़ पौधों के बीच से जंगली घास और जंगल साफ कर रहे थे, सुमन ने गुलमोहर का एक पौधा बगीचे में लगाया था, जो अभी छोटा था तथा इसके अलावा रिया ने पिछले ही वर्ष आम की गुठली बगीचे के बीच में मिट्टी खोदकर दबा दी थी, जो इस वर्ष एक छोटे से पौधे के रूप में थोड़ा बड़ा हो चुका था तथा सुमन ने घर के सामने वाले आंगन में एक कोने पर शहतूत का एक वृक्ष लगा रखा था जिस पर शहतूत के फल लगे हुए थे, बगीचे में फूलों के पौधे भी लगे हुए थे गुलाब, चमेली, रजनीगंधा, और जावा के सफेद, गुलाबी, लाल, रंग के फूल लगें हुए थे।दस बजे तक बगीचे का सारा कार्य समाप्त हो गया और धूप भी तेज हो गई थी तो सुमन रिया और रोहन को लेकर घर के अंदर चली गई और सारा घर का कार्य समाप्त करने के बाद रिया और रोहन को दोपहर के समय जब सुमन ने सोने को कहा तो दोनों बच्चों ने फिर से सुमन के बचपन का कोई किस्सा सुनाने को कहा ।

रिया- आपने कहा था कि आप अपनी गर्मियों की छुट्टियों की और भी बातें हमें सुनाएंगी।

रोहन- हां, मां सुनाइए ना मुझे अभी नींद भी नहीं आ रही है।

सुमन- अच्छा! सुनाती हूं, कभी-कभी गर्मियों की छुट्टियों में हम तीनो भाई बहन मम्मी पापा के साथ गांव जाया करते थे, और गांव जाने के लिए तुम्हारे नाना जी रिजर्वेशन दो महीना पहले ही करवा लिया करते थे। जब हमें पता चलता था कि हम गांव जाने वाले हैं तभी से हम अपनी योजनाएं बनाना शुरू कर दिया करते थे कि रेलगाड़ी में खिड़की की सीट पर कौन बैठेगा और एक महीना पहले से ही हम तीनों खिड़की की सीट पर बैठने के लिए झगड़ा करने लगा करते थे ।

रोहन - क्यों, मम्मी खिड़की की सीट आप सभी को अच्छी लगा करती थी, मुझे तो बिल्कुल भी पसंद नहीं आती,  रेलगाड़ी से बाहर तो सिर्फ जंगल, पहाड़, नदियां और गंदगी ही तो दिखाई देती है धूल मिट्टी भी पूरे चेहरे पर आती रहती है, मुझे तो सबसे ऊपर वाली सीट ही पसंद आती है वहां पर कोई दूसरा आकर नहीं बैठता है, आराम से अपने पूरी सीट पर मोबाइल फोन में गेम खेलना है अच्छा लगता है ना सुबह उठने के लिए कोई कहता है और ना पढ़ाई की कोई टेंशन रहती है इसीलिए मुझे ट्रेन में जाना ज्यादा अच्छा लगता है।

सुमन- हां बेटा आजकल तो मोबाइल फोन मिल जाए तो सारा संसार ही तुम सबको मिल जाता है बाहर के अनुभवों कि तुमको आवश्यकता ही कहां रहती है। पर उस समय यह स्मार्टफोन नहीं थे और अच्छा है जो उस समय यह स्मार्टफोन नहीं थे क्योंकि शायद स्मार्टफोन उस समय भी होता तो हम वह बचपन नहीं जी पाते, "जिसे हम याद करके आज भी आनंदित होते हैं" रेलगाड़ियों से दिखने वाले वह नजारे जिसे तू सिर्फ जंगल, पहाड़ और नदियां कह रहे हो वह हमारे लिए प्राकृतिक सौंदर्य और रोचक दृश्य हुआ करते थे, बड़ी - बड़ी नदियां जंगलों के बीच से होकर जब गुजरा करती थी, वह दृश्य अनुपम हुआ करता था जब खेत खलियानों के बीच से जब रेलगाड़ी गुजरती तो हरे - हरे लहराते हुई फसलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि धरती हरे रंग की चादर ओढ़ कर सो रही है और खेतों के बीच खड़ा 'पुतला' जो चिड़िया और कौवों को भगाने के लिए लगाया जाता है, ऐसा लगता था कि कोई उसकी नींद खराब ना कर दे इसीलिए पहरेदार की तरह खड़ा है  और जानवर हिरण, घोड़े, बैल गाड़ियां, बंदर और अनेकों प्रकार के पेड़ जिनका हम नाम तक नहीं जानते थे, मम्मी पापा से पूछा करते थे कि ये किस फल का पेड़ है क्योंकि शहरों में फल तो खाने के लिए मिलते हैं लेकिन वह फल किस पेड़ से तोड़े जाते हैं और वह पेड़ किस प्रकार का होता है उसके पत्ते किस प्रकार के होते हैं इसके बारे में जानकारी नहीं मिल पाती हैं। तालाबों में मखान की खेती होती है यह भी हमें तब पता चला जब हमने तालाबों के ऊपर बड़े-बड़े पत्ते देखें और मम्मी - पापा से उनके बारे में पूछा कि वह क्या है पूरे तालाब में ? तब मम्मी ने बताया यह मखान के पत्ते हैं इस तालाब में मखान की खेती होती है।

(रिया और रोहन बड़े ध्यान से सुमन की बातें सुन रहे थे।)

सुमन- और जब हम गांव पहुंचते थे तब हमारी खूब आवभगत हुआ करती थी सभी हमसे खूब प्यार जताते थे। तब गांव में सभी के घरों में टॉयलेट या बाथरूम नहीं हुआ करते थे, गांव के लोग खेतों में और जंगलों में ही शौच के लिए जाया करते थे और किसी- किसी के घर पर ही टॉयलेट हुआ करता था। और ज्यादातर लोगों के घर में हैंड पंप हुआ करते थे तब भी अधिकतर लोग नदियों और तालाबों में ही नहाने जाया करते थे।

रिया- मां ! आप और मामा सब भी टॉयलेट के लिए जंगलों में जाया करते थे।

सुमन- नहीं, मेरे बड़े पापा के घर पर टॉयलेट था इसीलिए हमें इतनी परेशानी नहीं हुआ करती थी।

पर घूमने के लिए मैं अपनी चचेरी बहनों के साथ जंगल और जहां हमारे आम और लीची के पेड़ लगे हुआ करते थे वहां जाया करती थी और वह बहुत सुंदर जगह है, और वह आज भी है गांव में लोग अपने-अपने जमीनों पर बहुत सारे पेड़ लगाया करते हैं और उसे वह गाछी कहलाते हैं ।

रोहन- गाछी क्या होता है, जंगल को जंगल ना कह कर गाछी क्यों कहते हैं, गांव के लोग?

सुमन - सभी जगहों की अपनी भाषा होती है जंगलों को कहीं पर वन तो कहीं अरण्य और अंग्रेजी भाषा में फॉरेस्ट कहा जाता है वैसे ही मैथिली भाषा में गाछी और बंगाली भाषा में बोन कहा जाता है । वैसे मैथिली भाषा में वृक्ष को गाछ कहते हैं, जहां बहुत सारे वृक्ष लगे हो वहां की भूमि को गाछी कहा जाता है।

रिया-तो, क्या वहां पर बहुत सारे पेड़ लगाए जाते थे, आपको पता है कि वहां पर कौन-कौन से पेड़ लगाए जाते थे ?

सुमन- वहां पर तो कई जड़ी बूटियों भी होती थीं जैसे गिलोय और ज्यादा जड़ी बूटियों के नाम तो मुझे याद नहीं है मगर गांव के लोग जड़ी बूटियों से भी अपना इलाज किया करते थे । 

आम, लीची, नीम, कटहल, जामुन, सीशो, और बांस के वृक्ष अधिक मात्रा में पाए जाते थे तथा जलेबी के आकार वाले फल भी पेड़ों पर हुआ करते थे उस पेड़ को सब जिलेबी का वृक्ष कहते थे।

(रिया और रोहन जोर - जोर से हंसने लगते हैं )

रोहन - मम्मी आपके गांव में जलेबी का भी वृक्ष होता है, हम भी जब गांव जाएंगे हमें भी दिखाइएगा और खिलाएगा पेड़ पर उगने वाली जलेबी।

सुमन- हां जरूर खिलाऊंगी ! तुम्हें और दिखाऊंगी भी, जानते हो गांव में जंगल होने के कारण गर्मी के दिनों में भी यहां जैसी गर्मी नहीं होती है और सुबह और शाम का वातावरण बहुत ही मनोहर होता है ज्यादा गर्मी पड़ने पर बारिश होने लगती है और मौसम सुहावना हो जाता है।

रिया - मां क्या आम के वृक्ष सभी जगह पाए जाते हैं और ऐसे कौन से वृक्ष है जो आपने अपने गांव में नहीं देखे और वह कौन से वृक्ष है जो आपने राजस्थान में नहीं देखें है।

तभी रोहन भी पूछता है- मां आपने गांव में जंगली जानवर भी देखे हैं जंगलों में घूमते हुए और पक्षी कैसे होते हैं वहां के?

सुमन- हां, रिया आम के वृक्ष लगभग सभी जगहों पर पाए जाते हैं क्योंकि मैंने अभी तक चार राज्यों में तो आम के पेड़ों को देखा है और केले के वृक्ष भी इन चारों राज्यों में भरपूर मात्रा में देखे हैं,

( झारखंड, बिहार, बंगाल और राजस्थान ) पर राजस्थान में लीची का वृक्ष और कटहल के वृक्ष मैंने नहीं देखा है और बिहार में खेजड़ी का वृक्ष नहीं होता है, जानते हो राजस्थान में खेजड़ी के बड़े-बड़े पेड़ होते हैं जिन पर सांगरी नाम का फल होता हैं वह लंबी लंबी फलियों की तरह होती हैं और खाने में मीठी होती हैं । 'पहले ' बयां (छोटी सी चिड़िया होती है) वह खेजड़ी के वृक्षों पर बहुत सुंदर - सुंदर घोंसले बनाया करती थी। और रोहन गांव में जंगली जानवर में मैंने लोमड़ी और सियार और बंदर,

बनबिलाव, तथा तरह-तरह के सांप देखे हैं।

क्योंकि हम ज्यादा दिनों के लिए गांव नहीं जाया करते थे, 15 से 10 दिन बस इतने ही दिन हम गांव में रहा करते थे। फिर हम वापस राजस्थान चले आया करते थे, हां तुम्हारे नाना जी बताते हैं की सवाई माधोपुर के जंगलों में अभी भी बाघ दिखाई देते हैं और राजस्थान के वन्य क्षेत्रों में हिरण बारहसिंघा और हाथी भी दिखाई देते हैं और मोर, तथा लाल, काले मुंह के बंदर भी राजस्थान की धार्मिक स्थलों पर मंदिरों में दिखाई देते हैं।

और गांव से वापस आते हुए, हम सभी थोड़े भावुक हो जाया करते थे। वापस आने पर हम तीनो भाई बहन पूरी यात्रा को बार-बार याद किया करते थे और गांव के वातावरण को भी खूब याद किया करते थे।

लेकिन जानते हो अब रेलगाड़ी से प्राकृतिक नजारे उस प्रकार नहीं दिखाई दिया करते हैं जैसे हमारे बचपन में दिखाई दिया करते थे अब तो सभी जगह बिल्डिंग और घर ही दिखाई दिया करते है छोटे - छोटे तालाब और नदियां तो तापमान में वृद्धि के कारण सूख ही गए हैं ।

रिया - मां हमारे गार्डन में भी तो हमने पेड़ लगाए हैं मैंने आम का पेड़ लगाया है और आपने भी तो पेड़ लगाया है उस पेड़ का क्या नाम है और हमारे घर के आंगन में जो पेड़ लगा है उस पेड़ का नाम क्या है

सुमन- हां तुमने जो पेड़ लगाया वह तो आम का पेड़ है, और जो मैंने पेड़ लगाया है वह गुलमोहर का पेड़ है और हमारे घर के आंगन में शहतूत का पेड़ है उसमें भी लंबे-लंबे खट्टे मीठे फल होते हैं। चलो बहुत हुआ, बहुत कुछ तुम दोनों ने पूछा और आशा करती हूं कि तुम्हें तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर मैंने दे दिए हैं। शाम के 5:00 बज गए हैं जाओ अपने दोस्तों के साथ गार्डन में जाकर खेलो मुझे बहुत सारे काम है।

(इस तरह सारी गर्मियों की छुट्टियों में प्रतिदिन दोपहर के समय रिया और रोहन एक साथ सुमन से उसके बचपन के कुछ पलों को किस्सों के रूप में सुनकर तरह-तरह की जानकारियां प्राप्त किया करते है और सुमन भी उन्हें पेड़ पौधों और प्रकृति से जुड़ी हुई कई तरह की बातें और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक करती रहती है। रिया और रोहन ने टीवी और वीडियो गेम के लिए एक समय निर्धारित किया और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ  दोस्तों के साथ मिलजुल के खेलना-कूदना प्रारंभ किया।)

समाप्त।


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