प्रेम का बंधन
प्रेम का बंधन
इस विषय से मुझे आठ वर्ष पहले का समय याद आ रहा है तब मेरी छोटी बेटी छः महीने की थी । और उसके जन्म के एक महीने बाद हमने घर चेंज किया था मेरे दो बच्चे और भी हैं तब वो दोनों भी सात और पांच वर्ष के थे। मैं हर समय बच्चों की देखभाल और घर के कामों में व्यस्त रहती थीं। और मेरे पति सुबह नौ बजे से पहले ऑफिस के लिए निकल जाते थे और शाम को सात बजे लौटते थे। दोनों बच्चे भी स्कूल चले जाते और घर में मैं और मेरी छोटी बेटी अंकू रहते।
अंकू बहुत छोटी थी और घर नया था और सारा सामान भी अस्त- व्यस्त फैला हुआ था। मैं अंकू के सोने का इंतजार करती रहती ,जैसे ही वह सोती मैं घर के कामों में लग जाती, मैं काम करके जैसे ही आराम करना चाहती तो मेरी लाडो उठकर बैठ जाती और फिर बच्चे स्कूल से आ जाते , फिर वैसी ही व्यस्तता जैसी ज्यादातर गृहणियों को होती है । मेहमानों का आना - जाना तो लगा ही रहता था।
मै कभी- कभी चिड़चिड़ापन महसूस भी करने लगती और कभी- कभी तो बच्चों पर बरस भी पड़ती।मेरी ये दिनचर्या मेरे पड़ोस में रहने वाले दम्पत्ति मधु दी औरसमीर दादा यानी भैंया ,शायद मेरी परेशानी समझ रहे थे।
मेरी अंकू है भी बड़ी मिलनसार और उस समय भी शायद ही किसी को निराशा किया हो, देखने में हष्ट-पुष्ट और सुंदर, लोगों को उसे खेलाने में भी आनंद आता था। वह भी सबके पास चली जाती थी।मुझे कभी- कभी तो उसका सबके पास चले जाना अखरता था और डर भी लगता था कि कहीं कोई नजर ना लगा दे।
एक दिन मधु दी मेरे घर आई और अंकू को थोड़ी देर के लिए अपने घर ले जाने के लिए मांगने लगीं -कि मेरी बेटी उसके साथ खेलना चाहती हैं। मैंने भी हां कह दी ,उस दिन से जब भी दी को समय मिलता वह अंकू को ले जाती ।
यह धीरे-धीरे रोज की हमारी दिनचर्या हो गई। अब अंकू भी उनके परिवार को पहचानने लगी वह उसे प्यार भी बहुत करते थे और अभी भी करते हैं। अंकू अब दोपहर के समय उनके यहां ही रहती बस बीच में जब उसे अपना आहार पीने का मन होता तो आती और पेट भरते ही वापस जाने की जिद्द करने लगती , हां! पर शाम होते ही वह उनके यहां भी नहीं रहती पर वह उन्हें भी मां- बाबा ही कहती हैं।
अंकु! अब डेढ़ साल की हो गई थी। गर्मी के दिनों में हम सब रास्ते पर घूमते तब वह दीदी की गोद में ही रहती थी मैं उसे ज्यादा देर गोद में नहीं रख पाती थी । मगर क्योंकि अंकू हम दोनों परिवारों के साथ दिखाई देती तो लोगों को यह समझने में बड़ी मुश्किल होती थी कि ये बच्ची है किसकी ? जब दीदी के पहचान के लोगो पूछते कि मधु ये तुम्हारी बेटी है क्या ? कब हुई ? तो हम बहुत हंसते और जब कोई अंकू को देखकर ,समीर दादा को खोजते हुए मेरे घर आकर अंकू से कहते कि मां- बाबा को बुलाओ और जब मैं बाहर आकर कहती- क्या हुआ?तब वह आश्चर्य से कहता ये बच्ची तो समीर दादा की है यहां कैसे इसे तो मैं हमेशा उनके साथ देखता हूं!
तब मैने उनसे कहा- यह उनकी बच्ची नहीं है यह मेरी बच्ची है। हां यह उनके साथ बाजार घूमने जाती है समीर दादा हमारे पड़ोसी है। तब उस व्यक्ति ने कहा- ये तो बंगाली भाषा बोलती है और आप तो बिहारी लग रहे हैं ?
मैंने कहा- ये उनके साथ ज्यादातर रहती है इसलिए यह बंगाली ही बोलती है ।ऐसा सिर्फ एक दो बार नहीं बार - बार होने लगा। कुछ और पड़ोसियों को मेरा और मधु दी का इतना मेल-जोल शायद अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन मुझे किसी महिला ने यह कहा- कि तू जो सब समय अपनी बेटी को उसके यहां पर दे देती है और वह जो उससे इतना प्यार करने लगी है, तेरी बेटी भी उसके बिना नहीं रह पाती है देखना एक दिन वह तुझसे तेरी बेटी ही ले लेगी , वैसे भी सब यही समझने लगे हैं कि वह उसी की बेटी है देखना एक दिन तेरी बेटी तेरे पास ही नहीं आएगी।
वह महिला मुझसे बहुत बड़ी और मेरी मां की आयु की थी,मैंने उनसे कहा- ऐसा थोड़ी ना होता है वह मेरी अंकू को बहुत प्यार करते हैं और मेरी अंकू भी उनके पास रहना चाहती है, किसी बच्चे को प्यार करना ,उसको छीन लेना तो नहीं होता , मेरा बच्चा मेरा ही रहेगा और मैं कैसे किसी के प्यार को इतना गलत समझ लूं कि वह मेरी बेटी मुझसे छीन लेगी।
मैंने उन्हें तो यह जवाब दे दिया पर रोज-रोज की लोगों की इस प्रकार की बातों से मैं भी थोड़ा डर गई थी ।
एक दिन मैंने भी सोच लिया कि मैं अब अपनी अंकू को अपने पास ही ज्यादा रखूंगी और इतनी ज्यादा देर के लिए उनके घर में नहीं छोडूंगी । उस दिन मैंने अंकू को सुबह से उनके घर नहीं भेजा और उनके बुलाने पर भी मैंने उनको बहाने बना ने की कोशिश की और अंकू को उन्हें ना देने का प्रयास किया। पर मेरी अंकू मधु दी के पास जाने के लिए रोने लगी।
मैं उसको चुप कराने का प्रयास कर रही थी पर वह और ज्यादा जाने की जिद करने लगी। दीदी मेरा यह व्यवहार देखकर दुखी थी और कहीं ना कहीं मुझे भी उनके बार-बार बुलाने पर अंकू को ना देना अखर रहा था, पर मैं यह सोच रही थी कि मेरा बच्चा मुझे पहचानना ही ना छोड़ दे। अंकू भी चुप नहीं हो रही थी, हार कर मैंने यह सारी बात अपने पति को फोन पर बताई ,उन्होंने मुझसे कहां -तुम भी अकेले में न जाने क्या -क्या सोचती रहती हो, वह बच्चे को इतना प्यार करते हैं इसीलिए तो बच्चा उनके पास रहता है और ऐसा थोड़ी ना होता है कि कोई तुमसे तुम्हारा बच्चा छीन ले, ऐसा कुछ नहीं होने वाला तुम अंकू को उनके पास जाने दो, मैंने उनसे फोन पर बात करके फोन रखा और फिर सोचा कि मैं 1 साल पहले कितनी परेशान थी अकेले तीन बच्चों को पूरा दिन संभालना कितना मुश्किल हो रहा था मेरे लिए तब दीदी ने मेरी एक हिसाब से अंकू को अपना समय देकर मेरी सहायता ही की थी,उनके परिवार ने अंकू को इतना प्यार करके अपने पास रखा और मैं लोगों की बातों में आकर क्या कर रही हूं।
मुझे जल्दी ही अपनी गलती का एहसास हुआ ,मैं अंकू को लेकर मधु दी के पास गई अब मधु दी भी मेरे ऐसे व्यवहार से दुखी हो गई थी। मैंने दीदी से कहा- दीदी अंकू जाने के लिए जिद कर रही है इसे ले लीजिए दीदी ने साफ मना कर दिया, कहा -रूबी तुमको मैं अपनी छोटी बहन की तरह मानती हूं और अंकू को मैं अपनी बेटी की तरह ही प्यार करती हूं, उसका ख्याल रखती हूं तब भी तुम लोगों की बातों में आकर उसे मुझे सुबह से नहीं दे रही थी ।
अंकू कितना रो रही है सुबह से !पर तुमने उसे मेरे पास नहीं आने दिया यह देख कर मुझे भी अब अच्छा नहीं लग रहा है यह तुम्हारा बच्चा है तुम अपने पास ही रखो, मैं नहीं लूंगी आज से, मुझे दीदी की यह बात सुनकर और भी ज्यादा अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था और दुख तो इतना हो रहा था कि मैं दीदी से माफी मांगते हुए , रोए जा रही थी।
मैंने दीदी से कहा- हां ,दीदी मेरी गलती है मुझे कल किसी ने कह दिया था कि वह तुम्हारे बच्चे को ले लेगी और जब तुम उसे अपने पास बुलाओगी, तो तुम्हारी बेटी तुम्हें नहीं पहचानेगी, और वो सब कहेंगे कि वह बच्चा उसका है क्योंकि सभी तो यही सोचता है तुम्हारे कहने से भी क्या होगा कि वह बच्चा उनका नहीं है वह मेरा है कोई नहीं मानेगा ,मुझे उनकी बातों से थोड़ी घबराहट हो गई थी।
इसीलिए मैंने ऐसा व्यवहार किया मैं अपनी गलती मानती हूं, आप अंकू को ले लीजिए यह भी आपके बिना नहीं रह पा रही है देखिए ना कितना रो रही है आप जब तक इसको नहीं लेंगी मैं आपके यहां से नहीं जाऊंगी। हम तीनों ही खूब रो रहे थे, इतने में दीदी की बेटी मोना आई और दादा भी आए उन दोनों ने हम तीनों को ऐसी स्थिति में देखा और कहा -अच्छा जो हुआ सो हुआ चलो अंकू को अब ले आओ, सुबह से नहीं देखा है उसे, वह भी कितना रो रही है और मैंने दीदी को अंकू उनकी गोद में दे दिया अंकू ने उनकी गोद में जाते ही रोना बंद कर दिया और मेरा मन भी शांत हो गया। इस घटना से मेरी और मधु दी की मित्रता और मजबूत हो गई और आज तक है।
अब तो अंकू स्कूल जाने लगी है बड़ी हो गई है सब समझने लगी है पर मधु मां का प्यार उसके मन में आज भी वैसा का वैसा ही है , ऐसी बात नहीं है कि वह मुझसे प्यार नहीं करती वह मेरे पास ही रहती है ,अब तो मेरे पास ही खाती है, सोती है और मेरे और अपने पापा के बिना रह भी नहीं पाती है।
पर मधु मां आज भी उसके लिए उतनी ही खास है जितना उस समय थी। अब तो हम एक जगह नहीं रहते पड़ोसी भी नहीं रहे पर कुछ दूरी पर हम दोनों का घर है कॉलोनी एक ही है पर आज भी अंकू जैसे ही मधु दी को देखती है तो वह सीधे जाकर मधु दीदी से लिपट जाती है और मधु मां ,मधु मां, कहते हुए उनके गले लग जाती है।
प्यार में वह शक्ति होती है जो किसी पराए को भी अपनेपन का एहसास कराती है हर जीवन को कई कहानियों से सजाता है।