पागलपन वाला इश्क़
पागलपन वाला इश्क़
"कब हमने इश्क़ को अपना बना लिया
शायद फिर एक सपना सजा लिया
क्या हदें हैं मोहब्बत की और किसके लिए
हमने भी प्रेम के मंदिर में सर को झुका लिया"
पागलपन तब तक ख़राब नहीं जब तक वो स्वार्थ के लिफ़ाफ़े में कैद न हो ..किसी चीज को पाना ही इश्क़ नहीं,और किसी चीज को ऐसे ही खो देना या किसी को दे देना बड़प्पन नहीं....।
एक ग़ज़ल है न ....."जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था ....लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है" ...शायद प्रेम का बीजारोपण सिर्फ इश्क़ के बीज से ही नहीं होता.....कभी कभी आकर्षण, लगाव भी मोहब्बत की चादर को बनाने के लिए रेशम धागे की तरह हो सकता है। यह आकर्षण सिर्फ त्वचा के रंग रूप के आधार पर नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर आप सफ़ेद त्वचा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं तो इसका मतलब है आप काली त्वचा से दूर जाने की प्रवर्ति रखते हैं। हाँ अगर किसी की बातें.....उसकी आदते ..उसका अपनापन आपको उसकी तरफ आकर्षित करता है तो इसका मतलब है आप के दिल में सही बीज अंकुरित होने वाला है ,लेकिन आपकी जिम्मेदारी यहीं खत्म तो नहीं होती है। अभी उस पेड़ को बड़ा करने की बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आपकी है,आप कैसी खाद डालते हैं? और समय समय पर पानी डालते हैं या नहीं? कीड़ों से उसकी रक्षा कैसे करते हैं? वैसे ही तो ये इश्क़ होता है,समाजिक दूषिता से कैसे अपने प्रेम को बचाते हो?
सिर्फ जिस्म की तलाश में ही
न रह जाए इश्क़
इश्क़ तो फूल है इबादत है।
इश्क़ को पाने के लिए अगर आपमें पागलपन है तो ये गलत है क्योंकि वो पागलपन अपनी मंजिल को पाकर खत्म हो जायेगा या फिर आप उस पागलपन के खुद शिकार हो जायेंगे , दिल की अदालत में फिर आप सही गलत का फैसला आँखे खोलकर भी नहीं कर पाएंगे । पागलपन को जीवित रखना चाहते हैं और ये भी चाहते हैं कि वो पागलपन आपका बदनाम भी न हो तो आप पागलपन को अपने कर्म के फल से न जुड़ने दें, सिर्फ कर्म में पागलपन रखिये। मुश्किल है समझना भी और करना भी ...क्योंकि पागलपन ,जुनून ,कब सकारात्मक से नकारत्मकता का चोला ओढ़ लेता है पता भी नहीं चलता। लैला मजनू भी एक दूसरे के लिए पागलपन की हद तक प्रेम के समंदर में गोता लगाते थे ,राधा भी कृष्ण के लिए पागल थी ,मीरा शायद अपने अमरत्व प्रेम के पागलपन के कारण ही विष का प्याला इश्क़ की चाय की चुस्की लेते हुए पी गयी थी। तो पागलपन रखिये...लेकिन ये ध्यान रहे पागलपन में कण्ट्रोल दिल का रहे ....न की मन का या दिमाग का।
