नीलगिरी के पर्वत और हम
नीलगिरी के पर्वत और हम
दिल्ली की व्यस्ततम जीवन शैली की थकान को मिटाने के लिए घुमक्कड़ी का शौकीन हमारा परिवार, पर्वतीय स्थलों में देहरादून, मसूरी, कुल्लू, मनाली, रोहतांग तक की प्रकृति की सुंदरता को सड़क मार्ग से जाता रहता है। क्योंकि इन सब नगरों की निकटता दिल्ली से निकट है, पर कुछ नई जगह जाने की सोच हमको दक्षिण की तरफ ले गई।
दक्षिण यात्रा के रोमांच को हमने सबसे सुना ही था, परंतु वहां जाकर दक्षिण के सौंदर्य को अपने अंदर आत्मसात किया। हमारे एक रिश्तेदार व्यापार के सिलसिले में तमिलनाडु गए, और वहां का प्राकृतिक आकर्षण उनको ऐसा भाया कि वह वही के होकर रह गए। उनके पुत्र की शादी के निमंत्रण पर इधर के सभी रिश्तेदारों ने एक साथ जाने का मूड बनाया, और कहीं घूमने अगर पारिवारिक समूह में जाया जाए तो घूमने का आनंद बढ़ जाता है। चार महीने पहले हम सब को निमंत्रण प्राप्त हो चुका था, तो छुट्टियों की व्यवस्था और जाने की प्लानिंग अच्छे से करने को बहुत टाइम मिल गया। जैसे तैसे सब को एक साथ सात दिन तक की छुट्टी मिल सकी, फिर सोचा तमिलनाडु जाने के लिए ट्रेन से ढाई दिन एक तरफ का लगता है, तो पांच दिन तो ट्रेन में ही बीत जाएंगे तो सब ने हवाई सफर का प्लान बनाया और दिल्ली से बैंगलोर की ढाई घंटे में
की।
धरती से ऊपर उठना बहुत रोमांचक रहा, बादलों को बहुत नीचे छोड़ चुके थे हम।
बैंगलोर में पहले से ही पांच दिन के लिए टैक्सी बुक करवाई जा चुकी थी, तो एयरपोर्ट के बाहर आने पर हमने देखा, तो ड्राइवर हमारे नाम का बोर्ड लिए खड़े थे।
पूरे दिन हम लोग बंगलुरु में रहे और सर्वप्रथम नंदी हिल में प्राचीन हिंदू मंदिर देखें, मंदिर में सर झुका कर जाने की परंपरा, मंदिरों के छोटे-छोटे दरवाजे स्वताः हमारे सर को झुका रहे थे।
सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर आज भी हमारी धार्मिक संपन्नता और स्थापत्य कला की भव्यता की उद्घोषणा करते प्रतीत होते हैं।
कर्नाटक होते हुए, तमिलनाडु में हमारा भव्य स्वागत सड़क के दोनों और लगे तोरण द्वार बनाकर दोनों तरफ कतार में खड़े केले के वृक्षों ने किया, और आंखों में अप्रतिम आनंद का संचार किया ,
चारों तरफ केले के शांत, शीतल हरितमा युक्त केले के वृक्ष, और ऊपर आंख उठाने पर नारियल के वृक्ष, पहाड़ों के बीच से गुजरते बादल, और धूप की आंख मिचोली हमें पलकें ना झुकाने को मजबूर कर रही थी।
सघन जंगलों का सौंदर्य अपनी आंखों से देखना स्वयं में आनंद रस में डुबो देना जैसा है। जंगलों की सघनता देखकर लगता है, कि उनकी जड़ों तक कभी सूरज ने भी उनके तम को ना छेड़ा होगा।
मसालों के सुगंधित वृक्ष मन मस्तिष्क और शरीर के ताप को दूर कर अपनी गोद में लीन करने को आतुर लग रहे थे।
अगस्त के महीने में हम यहां गर्मी के थपेड़ों से बचने के लिए अपने ठंडे कमरे से ना निकलने की हर संभव कोशिश कर रहे होते हैं, उस समय सड़कों पर भागती गाड़ियों में दोपहर तीन चार बजे ही हमें ठंडक महसूस हो रही थी। किन्नौर में घने ऊंचे हजारों वर्ष पुराने वृक्ष हमें अपने सम्मोहन के पास में जकड़ चुके थे।
जितना ऊपर हम जा रहे थे, प्रकृति के सौंदर्य के साथ, वृक्षों की सुगंध, भीनी भीनी हवा, ठंडी होती जा रही थी। हमारा लक्ष्य ऊटी था, लोगों के बीच में बहुत मशहूर हिल स्टेशन है ऊटी ।बीच-बीच में रुकते, खाते पीते हुए हम आगे बढ़ रहे थे।
एक दिक्कत का जिक्र करें बिना आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है, हमारी दोनों गाड़ियों के ड्राइवर साउथ इंडियन थे उनको ना हिंदी आती थी और ना अंग्रेजी, केवल तमिल जानते थे वह दोनों, और हमें तमिल ना आती। हममें से किसी ने हरियाणवी लहजे में कुछ कहा, और हो गई हमारी शिकायत कि यह लोग हमसे तेज आवाज में कुछ उल्टा सीधा कह रहे हैं, पर मालिक ने बड़ी मुश्किल से मामला शांत कराया।
जगह-जगह पर खाने और भाषा की समस्या का सामना किया हम लोगों ने, हम ग्रुप में थे, तो इंजॉय कर रहे थे। घने जंगलों के बीच सड़कों पर कभी भागती, कभी कुछ दृश्यों को देखने के बहाने रेंगती, और कभी हमारे द्वारा प्रकृति के खूबसूरत नजारों को कैमरे में कैद करवाने के लिए रुकती, कभी चलती कभी टिकती गाड़ी भी हमारी हमसफर बन रही थी।
वहां की ठंड से अनजान हम जब ऊटी पहुंचे, तो गाड़ी स्वेटर की दुकान के आगे ही रोकी फिर सबने अपने-अपने स्वेटर खरीदकर पहने फिर आगे बढ़े।
अगस्त के महीने में गर्म टोपी और पैरों में जुराब हम पर हंस जरूर रही होगी, ऐसा प्रतीत हो रहा था।
शाकाहारी लोग अगर कहीं घूमने जाएं, तो उनकी आधी जिंदगी तो अपने मन की रोटी ढूंढने में निकल जाए, ठंडे इलाके में वैष्णव भोजनालय भी हमने ढूंढ निकाला। साउथ इंडियन डोसा, इडली हमें अपनी जगह पर ही बड़े स्वादिष्ट लगते हैं, पर जब चारों तरफ साउथ इंडियन खानों की खान हो, तो आप एक दो बार ही ज्यादा से ज्यादा खा लोगे पर फिर रोटी दाल की खोज शुरू हो ही जाएगी। चावल के आटे की रोटी बनती है वहां, ऐसे में गेहूं के आटे की रोटी, होटलों में एक नई बात सुनी कि आप चावल तो बार-बार ले सकते हो पर रोटी गिनती की ही मिलेगी।
तो जानकारी के अभाव में भोजन की समस्या और भाषा ने हमें कुछ परेशान जरूर किया।
ऊटी का पियारा डैम चारों तरफ ऊंचे ऊंचे वृक्षों से आच्छादित, अप्रतिम सौन्दर्य का पर्याय है। चंदन के घने जंगलों को देखा तो सहज ही अंदाजा हो गया, कि चंदन की लकड़ी का तस्कर वीरप्पन को खोजना आसान न रहा होगा।
कितना मनमोहक दृश्य पहाड़ों की ओट से सड़क पर हम, चारों तरफ ढलानदार चाय के बागान, सामने सफेद भागते बादलों के टुकड़े हम साफ-साफ देख रहे थे।
आसमान, बादल, पहाड़, धरती और गगन चुमने की होड़ लिए घने घने वृक्षों की हरियाली से मोहित हो बादल जब भी मन में आए आ जाते हैं बरसने के लिए।
मन में बसी वहां के पेड़ पौधों से उठती सुगंध आज भी पूर्णतया अपनी सुगंध से आज भी सराबोर कर देती है। बहुत बड़ा चमत्कार ही कहे तो गलत ना होगा, कि वहां बंदर बड़े कमजोर से झुंड में मिले, डर ना लगा देखकर उनको।
लोग टोकरी में भरकर टमाटर, हरी सब्जियां सड़क किनारे रख जाते हैं वह आराम से खाते रहते हैं, पर बच्चे किसी के भी हो शरारत करना उनकी अमिट पहचान बन जाती है, और बंदरों के बच्चे शरारती ना हो, तो वह बंदर कैसे,
हमारे बच्चों के हाथ से उन्होंने आइसक्रीम चुपचाप आकर ले ली, और बाकायदा रैपर हटा कर आराम से पेड़ की डाल पर बैठकर आइसक्रीम के मजे लिए।
सड़क किनारे हमने गाड़ी खड़ी की तो घने जंगल से बंदरों का झुंड आया, और आराम से गाड़ियों पर चढ़कर बैठ गया।
हम डर रहे थे पर ड्राइवर ने उनको आसानी से जंगल की तरफ भगा दिया, हमने गाड़ियों पर बैठे बंदरों की फोटो भी ली,
समूह में रहकर समूह का प्रत्येक सदस्य अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, कर्नाटक में मैंने देखा नीलगिरी के जंगलों में हमेशा चौक्कना रहने वाला हिरण अपने झुंड में बैठा होता है तब कितना निर्भय होता है। बहुत बड़े ग्रुप में हिरणों को देखना हम दिल्ली वालों के लिए एक आश्चर्य से कम नहीं था।लंबे लंबे दातों वाले हाथियों का शांत समूह, जंगल के बीच में एक छोटी सी नदी में स्नान करने का दृश्य आनंदित कर गया हम सबको, और आंखों को अपलक रखने की प्रतिपल कोशिश में सफल रहा।
जंगल सफारी के लिए सुरक्षित जीप में सफर करना सच में बेहद रोमांचक रहा, जंगल के राजा शेर महाशय के शाही वैभव के दुर्लभ दर्शन हो ही गए हमको, एक राजा की तरह अपना खौफ पसारने के लिए गरजते हुए खड़े थे। वृक्षों की ओट में गर्जना भयभीत करने वाली थी, पर रोमांच हमारा चरमोत्कर्ष पर था।
हाँ ड्राइवर ने जंगली सूअर को देखकर जीप की स्पीड कुछ कम कर, हमको जंगली सूअर दिखाया, भयंकर और हिंसक लग रहा था।
पक्षियों का कलरव वातावरण में संगीत बिखरे रहा था, पहाड़ की वादियों से घिरा शहर ऊंटी चाय के बागानों की उठती सोधीं सोधीं खुशबू मन को आनंदित कर रही थी। हवा में पहाड़ों के बीच रूई के फाए की तरह बादल इधर उधर मर्डर मंडरा रहे थे।
डोडाबीटा स्थित लिप्टन चाय की फैक्ट्री में चाय की हरी पत्ती से लेकर चाय के पैकेट में पैक होने तक की पूर्ण प्रक्रिया को देखना बहुत रोमांचक रहा। तरह-तरह की चॉकलेट की वैरायटी और खुले में चॉकलेट, तराजू से तुलकर बिकती देखना अद्भुत लग रहा था। वहां के लोगों ने हम लोगों को बताया कि यहां घर-घर में चॉकलेट तरह-तरह के फ्लेवर की बनती है, और मिलती है।यहां आने वाले पर्यटक यहां से चॉकलेट और यहां की चाय जरूर लेकर जाते हैं। ऊटी का सबसे बड़ा आकर्षण, वहां के कैमरों का म्यूजियम है वह पुराने से पुराने कैमरे करीब (25000 )कंपनी के नाम, निर्माण वर्ष के साथ, अपनी पहचान बताते हुए अपनी गरिमा का की उद्घोषणा करते हैं।कहां-कहां से, किस-किस से, इस तरह के कैमरों को संयोजकों ने प्राप्त किया है इस सब का इतिहास वहां सुरक्षित है।
बच्चों को आकर्षित करता बिजली से संचालित डायना सोर म्यूज़ियम बेहतरीन संग्रहालय है।
कंक्रीटो के जंगलों में रहने वाले हम लोगों के लिए दक्षिण भारत का प्राकृतिक सौंदर्य के आकर्षण ने हमको ऐसा सराबोर किया, कि हम आज तक उसके मोहपाश से निकल ना पाए, दक्षिण भारत के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर ऐसा लगता है, कि नीलगिरी के जंगल प्रकृति का स्थाई निवासस्थान है, और वह नित नए रूप रखकर, अपना नित नया श्रृंगार करती है।