Prem Bajaj

Others

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नई जिंदगी

नई जिंदगी

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सुनीता के पति को गुज़रे दो साल हो गए , इकलौता बेटा नौकरी के सिलसिले में दिल्ली रहता है , सुनीता अकेली अम्बाला में है ।

"मां , क्या करें दिल्ली में फ्लैट इतने छोटे-छोटे होते हैं , उपर से किराया इतना ज्यादा , दो बैडरूम सैट है , उसका भी प़द्रह हजार किराया जाता है । एक रुम हमारा और एक बेबी को भी तो चाहिए । आपको भी कैसे ले जाएं साथ में , आप चिंता ना करें यहां मकान तो अपना है ही , पिता जी की पैंशन भी आती है , आप एक नौकर रख लिजिए , आराम से रहिए ,हम हर पंद्रह दिनों में आपको मिलने आते रहेंगे ।"

"ठीक है बेटा , तुम सही कह रहे हो बच्चा भले छोटा सही उसे भी प्राईवेट रूम चाहिए । "

पहले पंद्रह दिन, फिर महीने में , और अब तो छह-छह महीने चक्कर नहीं लगता बेटे का , कहते हैं व्यस्त हैं , समय ही नहीं मिलता ।  रविवार को कभी - कभी विडियो काल कर देते हैं तो शक्ल देख कर तसल्ली हो जाती थी ।

एक बार सुनीता का मन बहुत उदास था तो चल बस पकड़ कर चल पड़ी दिल्ली बच्चों से मिलने , रास्ते में अचानक बस खराब हो गई , और ठीक होने में काफी समय लगा लगभग शाम ढल चुकी , सुनीता को घबराहट महसूस होने लगी , एक तो अकेली , उसपर बच्चों को बताया भी नहीं कि वो अकेली उनके पास जा रही है , उस पर फोन की बैटरी भी खत्म , किसी को फोन भी करें तो कैसे ?? 

उसी बस में एक सज्जन पुरुष रमेश जी भी बैठे थे , जो  समझ गए कि ये औरत अकेली और घबराई हुई है । तो उनके पास गए और बोले ... "आप घबराईए मत , घर पर फोन कर लें कि आप लेट हो जाएंगी , बस अभी थोड़ी देर में चलने ही वाली है ‌।" सुनीता को देखने और बातचीत में महसूस हुआ कि रमेश जी एक नेक इंसान हैं , तो सुनीता ने बताया कि उसका फोन बंद हो गया , और वो बेटे के घर जा रही है , जिसे उसने बताया ही नहीं ।

"ओह, क्या आप के पास बेटे का पता है ।"

"जी हां ," कहकर एक कागज दिखाती है ।

"आप चिन्ता ना करें मैं आप को पहुंचा दूंगा ।"

और दिल्ली पहुंच कर रमेश जी सुनीता को घर के बाहर तक छोड़ कर आते हैं , उनके इस नेक रवैये के कारण दोनों के फोन नं का आदान-प्रदान होता है ।

रास्ते भर बातचीत करते हुए रमेश जी सुनीता के बारे में सब जान जाते हैं और मशवरा देते हैं कि अपनी पुरानी सहेलियों से मिले - जुले , कोई व्हटसअप ग्रुप बनाए , इस तरह समय काटना आसान हो जाता है और हमें अकेलापन भी नहीं सालता ।

धीरे- धीरे सुनीता ने अपनी पुरानी सहेलियों से मिलना - जुलना शुरु कर दिया । एक - दो किट्टी - पार्टी भी चला ली , अच्छा टाईम पास होने लगा । मगर ये कोरोना ने फिर से सब वैसा माहोल बना दिया , ना कहीं जा सकते हैं , ना किसी को बुला सकते हैं , बेटे - बहु को भी ना आने का बहाना मिल गया , अकेला कैसे और कब तक जीए कोई , व्हटसअप तो चलाना आता था , किट्टी ग्रुप बने हुए थे , धीरे-धीरे और ग्रुप बनाए सब हम उम्र के लोग पुरुष एवं महिलाएं , कभी हंसी ठिठोली करते , तो कभी एक - दूजे को नई - नई रैसिपि बताते , इनमें कुछ जोड़े तो कुछ अकेले भी थे । 


सुनीता को बाद में पता चल गया कि रमेश जी अकेले हैं , उनकी बीवी को गुज़रे चार साल हो चुके थे , कोई औलाद नहीं, किसी का कोई सहारा नहीं , कभी खाना बनाते , कभी नहीं ।सुनीता को अच्छा ना लगता , उन्हें रैसिपि बताती रहती और कुछ ना कुछ बनाने के लिए उन्हें कहती , वो भी मान जाते और बना कर खाते तो और भी अच्छा लगता , फिर घंटो फोन पर बातें किया करते ।दोनों को एक - दूजे का साथ अच्छा लगता , बातें करना अच्छा लगता , लाक डाउन तो खत्म हो गया था लेकिन फिर भी घर से बाहर नहीं निकलते थे । एक दिन रमेश जी ने हिम्मत कर के सुनीता से पूछ लिया ,

"क्या आप मेरी जीवन संगिनी बनेगी ?"

ना जाने कैसा अपनापन, कैसा आग्रह था उनकी बात में सुनीता ना नहीं कह पाई ।दोनों के दिलों की हो गई सगाई फोन पर ही ।सुनीता ने बेटे - बहु को फोन पर बताया कि नई जिंदगी शुरू करने जा रही है , इसलिए एक बार ज़रूर आएं , बच्चे आए तो सुनीता ने रमेश जी को बुलाया और बच्चों से मिलवाया जिसे देख बच्चे सकपका गए ।

"मां ये कोई उम्र है शादी की आपकी , हमारी शर्म नहीं तो कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज़ किया होता ।"

"क्यों शादी सिर्फ दो जवान ही कर सकते हैं , हम लोगों के अरमान, इच्चछाएं नहीं क्या , शादी का मतलब केवल शारीरिक संबंध ही नहीं , शादी का मतलब एक - दूजे का साथ निभाना , एक - दूजे की भावनाओं की कद्र करना है । हम दिल से एक दूजे को समझते हैं , और हम एक दूजे संग खुश रहते हैं

हम आज से अपनी नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं , तुम लोगों की इच्छा हो तो रूको अन्यथा जाना चाहो तो जाओ ।"

बच्चे समझ जाते हैं कि सही मायने में शादी एक दूजे का साथ निभाना है , एक - दूजे के लिए जीना है , एक - दूजे संग जीना है , और उन दोनों को पवित्र बंधन में बांध देते हैं नई ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए ।


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