Kajal Kumari

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नारी ही नारी की शत्रु क्यों?

नारी ही नारी की शत्रु क्यों?

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महिला सशक्तिकरण की बात सिर्फ़ कहने और सुनने तक ही है हमारे समाज में। हमारे देश में नारी को सृजन की शक्ति माना जाता है ।प्राचीन काल से महिलाओं पर गया कई अत्याचार होते आ रहे हैं, पुरुष समाज में लैंगिक भेदभाव में कमी लाने हेतु महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जा रहा है। प्राचीन ग्रंथों में नारियों को पूजनीय तथा देवी तुल्य माना गया है। सीता सावित्री गायत्री अनसूया जैसी महिलाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन गौर से देखा जाए तो नारी की सबसे बड़ी दुश्मन एक नारी ही है। दिल दुखता है यह सोच कर कि कैसे एक नारी अपने ही घर की दूसरी नारी की दुश्मन बन जाती है। नारी जो दया की मूर्ति है करुणा का भंडार, ममता का सागर हिचकोल खाता है, जो दूसरों के दर्द को अपना समझती है ।हर दर्द को सह कर मुस्कुराती है वो कैसे दूसरी नारियों की दुश्मन बन जाती है। लेकीन सच यह है कि नारी बहुत ही स्वार्थी होती हैं ।ये अपनी चीज़ पर किसी दूसरे का हक नहीं देख सकते हैं, जब बात अपने बेटे पर आ जाए तो उस पर एकछत्र राज्य चाहती है। एक नारी एक अच्छी मां बहन पत्नी हो सकती है पर जब वह स्वरूप परिवर्तित कर सास ,ननंद बहु ,भाभी बनती है अलग ही रंग में ढल जाती हैं। इसका कारण है जलन प्रतिस्पर्धा की भावना। नारी को शुरू से ही अपने वजूद के लिए संघर्ष करना पड़ा है। अपने से आगे निकलती हुई किसी भी स्त्री को देखकर इनके मन में असुरक्षा की भावना आती है। बेटे या भाई पर किसी और स्त्री का हक उसके मन को विचलित कर देता है। वह नारी ही है जो कि सास के रूप में अपनी बहू को बेटी जन्म देने पर कोसते रहती है। बहू के भ्रूण में कन्या यह जानकर उसे गिराने की साजिश करने लगती है। नारी है जो बेटो को वंश का चिराग मानकर गर्भ में पल रही उस बेटी की अपेक्षा करती है। ज्यादातर औरते शादी के बाद भी अपने बेटे और भाई पर से अपना हक नहीं छोड़ना चाहती। बहु या भाभी को बड़े धूमधाम बैंड बाजा बाराती के साथ ब्याह कर लाते हैं। अगले ही दिन उनके साथी पढ़ाई हो जैसा व्यवहार करने लगती हैं। एक नारी होती है जो दहेज के लिए अपने परिवार के साथ मिलकर। उस दूसरी घर से आई हुई नारी को प्रताड़ित करती है । और उसे प्रताड़ित ही नहीं करती बल्कि जान से भी मार देती हैं। सास भुल जाती है कि एक दिन वह भी इसी तरह आई थी और ननद भुल जाती है की एक दिन इसी तरह वह भी किसी के घर जाएगी। पर नहीं उनको लगता है जैसा हमारे साथ हुआ वैसा ही व्यवहार हम भी करे । वर्षों से इतिहास गवाह है एक स्त्री को दहेज के लिए जितना सास और ननद प्रताड़ित करती हैं, उतना कोई नहीं करता हैं। बदकिस्मती से बेटा या भाई अपनी पत्नी से बदसलूकी व्यवहार करता है तो मां और बहन समझाने के बदले बहू को ही दोष देती हैं। अपने पति को परमेश्वर मानकर उसकी हर यातना सहने पर बाध्य करती हैं। सरकार के नाम पर बेटी के साथ ससुराल में हो रहे जुल्म को सहने की भी राय एक नारी देती हैं। कोठे की मालकिन बन लाचार नाड़ियों को अपना शरीर बेचने पर मजबूर करने वाली भी एक नारी होती है। बूढ़े सास ससुर को ताना मार कर सताने वाली भी एक नारी होती है ।कोई भी बेटा अपने मां-बाप को कष्ट नहीं देना चाहता पत्नी की बात में आकर वह उनको अपमाणित करता है और उनसे दूर जाकर रहने लगता है। समझ नहीं आता दुख एक सी तकलीफ एक सी पालने वाली महिलाएं एक दूसरे के दुश्मन क्यों होती है। इसका एक और कारण है औरतों में आत्मविश्वास की कमी। बचपन से ही उसे कमजोर समझा जाता है। जब तक नारी खुद को सबल नहीं बनाएगी तब तक स्वयं अन्याय का सामना नहीं करेंगी , यह दूसरी नारियों का सम्मान नहीं करेगी अतः इनके उत्थान की बात फिजूल है। असली नारी सशक्तिकरण तभी होगा जब एक नारी अपनी सोच को अपनी विचारधारा को बदलेगी। जब यह आपस में ही फूट पड़ेगी तो पुरुषों को तो मौका मिलेगा ही औरतों को नीचा दिखाने का, उन्हें दबाकर रखने का, उन्हें अपमानित करने का। नारी को खुद को दूसरी नारी की जगह पर रखकर उसके दुख तकलीफ और कष्ट को समझना चाहिए, एक दुसरे की सहायता करनी चाहिए । तभी हम महिला सशक्तिकरण की बात कर सकती हैं इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान स्थापित कर सकती हैं।


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