मुट्ठी भर आसमान
मुट्ठी भर आसमान
आज प्रभा बहुत खुश थी। उसकी खुशी का कोई ठिकाना ना था। आज लग रहा था जैसे उसने अपनी छोटी-सी मुट्ठी में आसमान को समेट लिया है।
प्रभा एक स्पेशल चाइल्ड है। मां-बाप की इकलौती संतान प्रभा को जब वह बहुत छोटी सी थी, तभी से ड्राइंग का बहुत शौक था। अपने हाथों को वह अक्सर पेपर पर आजमाया करती थी।प्रभा एक स्पेशल चाइल्ड जरूर थी पर जैसे उसका दिमाग सामान्य बच्चों से ज्यादा तेज दौड़ता था।
छोटी सी प्रभा को चलने में बहुत परेशानी होती थी। परंतु वह हार नहीं मानती थी। उठती गिरती और फिर उठकर संभलत, यही उसकी दिनचर्या थी।
इसी बीच वह अपने नन्हे नन्हे हाथों से कुछ आड़ी टेढ़ी लकीरे पेपर पर बनाया करती थी। उसके बाद जब वह थोड़ी सी बड़ी हुई तो कैनवास पर हाथ आजमाती रहती थी।
इसी बीच प्रभा अपने छोटे छोटे हाथों से कुछ ऑडी और टेडी लकीरे पेपर पर उकेर दिया करती थी। फिर जब प्रभा थोड़ी सी बड़ी हुई तब वह......
प्रभा जब थोड़ी सी बड़ी हुई तब वह अपनी मन की छवि कैनवास पर बनाने लगी। सभी लोग जो उसे ऐसा करते देखते थे, प्रभा पर हंसते और कहते प्रभा तू रहने दे तेरे बस की बात नहीं है।सब की बातों से थोड़ा सा घबराती और डर जाया करती थी, परंतु अपनी हिम्मत नहीं छोड़ती थी ।और उतनी ही हिम्मत और शिद्दत से अपने मन के भाव और छवि प्रस्तुत कर देती थी।
प्रभा के इस कार्य में उसके माता-पिता उसका पूर्ण सहयोग करते थे। हमेशा प्रभा को वे उत्साहित कर उसे समझाते थे कि किसी के भी टोकने या कुछ कहने पर अपना हौसला मत होना कल हम दुनिया में रहे ना रहे तुम्हें अपना सहारा खुद बनना है।
इन सभी प्रेरणा ओं के बीच में प्रभा के मन में कब पेंटिंग का हुनर समा गया कुछ पता ही नहीं चला। प्रभा आज पूरे 17 साल की हो गई और एक इंटरनेशनल पेंटिंग एग्जिबिशन में उसने अपने मां-बाप की मदद से और उनके सहयोग से कुछ पेंटिंग भेजी थी। 15 दिन निकल गए थे। इस बात को प्रभा और उसके माता-पिता भी इंतजार कर थक गए और उन्होंने अपनी आंस छोड़ दी की प्रभा कि किसी भी पेंटिंग को प्रतियोगिता के दायरे में रखा भी होगा या स्थान भी मिला होगा।।
प्रभा अपनी व्हील चेयर पर बैठे बैठे इस सपने का त्याग कर चुकी थी। सहसा मोबाइल रिंग बजी प्रभा की मां ने फोन पर बात की तब उन्हें पता चला कि प्रभा की दो पेंट पेंटिंग्स फॉर इंटरनेशनल अवार्ड में स्थान मिला है। आज प्रभा की मां अपनी कोख पर शर्मिंदा नहीं अपितु गर्व महसूस कर रही थी। प्रभा उनके लिए कोई बोझ नहीं थी, परंतु आज वह सम्मान बन गई थी।।
कभी प्रभा के पापा मायूस होते तब प्रभा की मां अक्सर अपने पति को समझाया करती थी। भगवान ने प्रभा के रूप में हमें उनकी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने शायद हमें इसलिए चुना, क्योंकि भगवान जानते थे कि हम सही और ठीक प्रकार से इस जिम्मेदारी के लायक है और इस जिम्मेदारी को उठा सकते हैं। परंतु आज प्रभा की मां की बातों को प्रभा ने साकार कर दिखाया और उनका मन गर्व से ऊंचा कर दिया था।
प्रभा की मां दौड़कर प्रभा के कमरे में जाती है और उसे बताती है कि इंटरनेशनल पेंटिंग एग्जिबिशन में उसकी दो पेंटिंग का चयन किया गया है।
प्रभा अपनी व्हील चेयर से उठकर नाचने का प्रयत्न करती है, परंतु वह जोर से गिर जाती है। परंतु आज वह उदास और मायूस नहीं होती ।बल्कि खिलखिला कर हंस पड़ती है और अपनी खुली मुट्ठी को बंद कर लेती है।
पता है क्यों ?
क्योंकि आज उसकी मुट्ठी में उसका सारा आसमान था ।मुट्ठी भर आसमान।